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इंसानियत से ही झलकता है इंसान का असली रूपइंसानियत से ही झलकता है इंसान का असली रूप

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मानव रूपी तन पाने के बाबजूद भी इस संसार में लोगो के विचार ,और भावनाएं कुछ अलग ही होती है सभी के अंदर मानवता का भाव नहीं होता है मानव का असली रूप तो दया , धर्म परोपकार ,पुण्य आदि से झलकता है इंसानियत के भाव को लेकर हम आपको मानवता की सीढ़ी से अवगत कराते है. एक नगर के नजदीक एक भोजनालय (होटल) था।इस होटल का मालिक बहुत ही दयालु और निर्मल स्वभाव का एक सज्जन व्यक्ति था। उस होटल से उसे बहुत ही अच्छी आमदनी प्राप्त होती थी ।उस होटल के मालिक का जीवन बहुत ही सुखी चित्त के साथ व्यतीत हो रहा था। शाम के वक्त जब वह घर जाता तो अपने माता - पिता की सेवा करता उनके लिए अच्छी अच्छी चीजें ले जाता साथ ही साथ वह अन्य लोगों की भी सहायता करता जबकि आप देखते होगें के की इस जगत में बहुत से लोग तो अपने माता पिता की तो मदद करते नहीं वे दूसरों की क्या करेंगे. उस होटल मालिक की सबसे बड़ी विशेषता थी कि वह अपने होटल में आने वाले हर विकलांग, अनाथ , दीनदुखी को मुफ्त भोजन कराता था। कई वर्षों तक यह कार्य निरंतर चलता रहा। इसके अलावा रोज सुबह चिड़ियों को दाना डालना वह मूल कर्तव्य समझता था . ऐसे करने पर उसे बहुत शांति मिलती थी, और ऐसा करने के लिए अपने दोस्तों को भी कहता था  एक दिन एक और सज्जन ने उस होटल मालिक से पूछा, आप ऐसा करते हैं तो आपको नुकसान नहीं होता। तब उस होटल मालिक ने कहा, मैं हर दिन पक्षियों को दाना देता हूं। मैंने गौर किया किसी अपाहिज पक्षी का दाना कोई अन्य पक्षी नहीं चुनता है।और साथ ही साथ वह उसकी मदद करता है पशु -पक्षी भी एक दूसरे की सहायता करते है. फिर तो हम इंसान है . हमारे पास तो उनसे कई गुना छमता होती है. वे पक्षी होते हुए भी दया का भाव रखते है. तो मैं तो इंसान हूं। मुझे लगा मुझे भी हर विकलांग और गरीब , असहाय व्यक्ति को भोजन करवाना चाहिए। तभी से मैं इस राह पर चल दिया। ऐसा करने पर मुझे आत्मिक सुकून मिलता है। इंसान तो सभी होते हैं लेकिन इंसानियत कुछ इंसानों में होती है। दूसरों के दुःख को बांटना उनकी मदद करना उन्हें खुशियाँ देना ही इंसान की इंसानियत है परोपकार ही सबसे बड़ा पुण्य है .

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