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आत्मज्ञान से "मैं" को जानेंआत्मज्ञान से "मैं" को जानें

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यह संसार सागर जड़ और चेतन को धारण किये हुए है । इस संसार में हम जड़ पदार्थों से निर्मित बाह्य दृष्यमय जगत की उपलब्धि तो कर ही लेते हैं, परंतु इसके पीछे सत्ता स्वरूप चेतन तत्व का आभास तक नहीं होता। पदार्थों को प्राप्त करना तो एक आम बात है. पर किसी चीज के लिए चेतना का भाव लाना तो कुछ विशेष ही है.   आधारभूत चेतना की सत्ता भौतिक पदार्थों व समस्त शरीरों के पीछे शक्ति के रूप में विद्यमान रहती है। हमारे भौतिक शरीर के भीतर भी वही चेतना आत्मा के रूप में विद्यमान है। आज इस जगत मैं मानव की चेतना शक्ति के कारण ही सूक्ष्म व भौतिक क्रियाएं संपन्न् होती हैं।  इस संसार में लोग मैं को ही सबकुछ मान बैठते है. हर जगह उन्हें मैं ही मैं दिखाई देने लगता है वे यह नहीं जानते की यह शरीर , धन दौलत ,पैसा , जन सब कुछ नाशवान है. आज नहीं तो कल मेरे हाथ से छूट जायेंगेंं. सबसे बड़ी बात तो यह की वह अपने इस नाशवान शरीर को मैं और मेरा की सत्ता के रूप में संजोय रहता है .इस बात का बिलकुल जिक्र ही नहीं करता की यह सब नाशवान  है आज नहीं तो कल आत्मा इस देह को छोड़ देगी और इस शरीर का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा फिर न तो मैं रहेगा न ही मेरा. केवल आत्मा ही रह जाएगी जो अवनाशी है .एक शरीर को छोड़ किसी अन्य को धारण कर लेगी फिर उसे छोड़ किसी अन्य को आत्मा ज्यों की त्यों रहती है। उसका कभी नाश नहीं होता है। ईश्वर प्रदत्त मन, बुद्धि व इंद्रियों के द्वारा सांसारिक विषयों का ज्ञान तो होता रहता है, इस जगत में जिसने मैं को जान लिया वही सबसे बड़ा आत्म-साक्षात्कार हुआ है .जिसने इस देख को धारण करने के बाद अपनी आत्मा में परमात्मा के दर्शन कर लिए वह परम धाम को प्राप्त किया है. आत्म-साक्षात्कार कर लेने वाला व्यक्ति इस संसार में रहते हुए भी उसमें लिप्त नहीं होता, बल्कि सांसारिक कार्यों को वह अपना कर्तव्य समझकर अधिक समझदारी से तत्परतापूर्वक व पूर्ण लगन के साथ करता है। उसका प्रत्येक कार्य भगवान को समर्पित होता है। अज्ञान नष्ट हो जाने के कारण वह खुद को बंधन-मुक्त समझता है। व्यक्ति का जीवभाव समाप्त होकर आत्मभाव जाग्रत होता जाता है।

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