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भगवान गणेश को प्रसन्न करने के लिए करें इस मन्त्र का जाप, ऐसे कीजिये पूजाभगवान गणेश को प्रसन्न करने के लिए करें इस मन्त्र का जाप, ऐसे कीजिये पूजा

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भगवान श्री गणेश की पूजा का विशेष दिन बुधवार माना जाता है. इसके साथ ही इस दिन बुध ग्रह की भी पूजा की जाती है. अगर  किसी व्यक्ति की कुंडली में बुध ग्रह अशुभ स्थिति में हो तो बुधवार को गणेश पूजन करने से लाभ मिलता है. इसके अलावा बुधवार के स्वामी बुध ग्रह हैं जो बुद्धि के कारक भी माने जाते हैं. इस श्री गणेश की मोदक का भोग लगाकर पूजा करने से बुद्धि बढ़ती है और साथ ही सुख-सफलता बनी रहती है.

ऐसे करें गणेश का पूजन-
पूजन श्रीगणेश को सिंदूर, चंदन, यज्ञोपवीत, दूर्वा, लड्डू या गुड़ से बनी मिठाई का भोग लगाया जाता है . इसके बाद धूप और दीप जलाकर आरती कीजिये .

पूजन में इस मंत्र का जप करें-

प्रातर्नमामि चतुराननवन्द्यमानमिच्छानुकूलमखिलं च वरं ददानम्।
तं तुन्दिलं द्विरसनाधिपयज्ञसूत्रं पुत्रं विलासचतुरं शिवयो: शिवाय।।
प्रातर्भजाम्यभयदं खलु भक्तशोकदावानलं गणविभुं वरकुञ्जरास्यम्।
अज्ञानकाननविनाशनहव्यवाहमुत्साहवर्धनमहं सुतमीश्वरस्य।।
गणेश जी की ऐसी मूर्ति घर में लाती है खुशियां

मंत्र का अर्थ-
मैं ऐसे देवता का पूजन करता हूं, जिनकी पूजा स्वयं ब्रह्मदेव करते हैं. वही ऐसे देवता, जो मनोरथ सिद्धि करने वाले हैं, भय दूर करने वाले हैं, शोक का नाश करने वाले हैं, गुणों के नायक हैं, गजमुख हैं, अज्ञान का नाश करने वाले हैं. मैं शिव पुत्र श्री गणेश का सुख-सफलता की कामना से भजन, पूजन और स्मरण करता हूं.

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यदि शनि देव के प्रकोप से हो गए है परेशान तो, ऐसे करें पूजा और इस मंत्र का जापयदि शनि देव के प्रकोप से हो गए है परेशान तो, ऐसे करें पूजा और इस मंत्र का जाप

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भगवान शनि देव के बारे में हिन्दू धर्म में बानी हुई है कई मान्यताये| लोगो के अनुसार भगवान् शनि देव को माना जाता है ग्रहों का न्यायकर्ता. इसके साथ ही हर व्यक्ति के द्वारा किये जाने वाले कार्य और उसके फल के पीछे शनि देव ही होते हैं. वही किसी भी व्यक्ति की आजीविका, रोग और संघर्ष शनि के द्वारा ही निर्धारित होते हैं. वही शनि को प्रसन्न करके व्यक्ति जीवन के कष्टों को कम कर सकता है. इसके साथ ही करियर और धन के मामले में सफलता पा सकता है. भगवान शनि देव की पूजा यदि समझकर और सावधानी के साथ की जाए तो तुरंत फलदायी होती है.

शनि देव की पूजा में इन बातों का रखें ध्यान

- शनि देव की पूजा शनि की मूर्ति के समक्ष नहीं करनी चाहिए 
- शनि के उसी मंदिर में पूजा आराधना करनी चाहिए जहां वह शिला के रूप में विराजमान हो|
- प्रतीक रूप में शमी के या पीपल के वृक्ष की आराधना करनी चाहिए.
- शनि देव के समक्ष दीपक जलाना सर्वश्रेष्ठ है, परन्तु तेल उड़ेल कर बर्बाद नहीं करना चाहिए.
- जो लोग भी शनि देव की पूजा करना चाहते हैं , उनको अपना आचरण और व्यवहार अच्छा रखे | 

किस प्रकार करें शनि देव की पूजा?

- शनिवार के दिन पहले शिव जी की या कृष्ण जी की उपासना करना चाहिए| 
- उसके बाद सायंकाल शनि देव के मन्त्रों का जाप करें
- पीपल के वृक्ष की जड़ में जल डालें,उसके बाद वृक्ष के पास सरसों के तेल का दीपक जलाएं.
- किसी भी गरीब व्यक्ति को एक वेला का भोजन जरूर कराएं.
- इस दिन भूलकर भी तामसिक आहार ग्रहण नहीं करना चाहिए 

शनि देव को प्रसन्न करने के मंत्र

- "ॐ शं शनैश्चराय नमः"
- "ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः"
- "ॐ शन्नो देविर्भिष्ठयः आपो भवन्तु पीतये। सय्योंरभीस्रवन्तुनः।।"

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आपने कई बार अपने आस-पास लोगों को सूर्य नमस्कार करते हुए या लोगों को जल चढ़ाते हुए देखा हो सकता है . परन्तु क्या कभी आपने सोचा है कि लोग रोजाना सवेरे इसी क्रिया को क्यों दोहराते हैं. चलिए आज आपको बताते हैं कि सूर्य कैसे आपके जीवन के अंधकार को दूर कर सकता है.

सूर्य के प्रकाश की खास बातें-

- सूर्य से प्राप्त होने वाला प्रकाश इस धरती पर ऊर्जा का एक मुख्य स्रोत है
- यह प्रकाश बहुत प्रभावशाली और जीवनदायी है
- इस प्रकाश में अल्ट्रा वायलेट किरणें होती हैं
- ये किरणे कुछ मामलों में लाभदायक होती हैं और कुछ में हानिकारक भी होती है
- सूर्य के प्रकाश से मन और शरीर दोनों को अच्छा किया जा सकता है
-सूर्य के प्रकाश से हमें विटामिन डी भी मिलता है और यही सूर्य का प्रकाश सुबह के समय हमें लाभ भी देता है

सूर्य के प्रकाश से स्वास्थ्य ठीक करें-

- सूर्य जब उदय हो रहा हो तब सूर्य की रौशनी में कम से कम पांच मिनट तक रहें  यह आपके स्वास्थ्य के लिए उत्तम दवा है
- सूर्य की रौशनी में  स्नान करने से टी बी, और कैंसर जैसी समस्याओं में अद्भुत लाभ होता है
- सूर्य की रौशनी से त्वचा की समस्याएं दूर होती हैं
- जिन घरों में सूर्य की रौशनी आती है वहां रहने वाले लोग ज्यादा प्रसन्न रहते हैं
- ऐसे घरों में कलह कलेश की संभावना भी नहीं होती
- अवसाद ग्रस्त लोगों को सूर्य की रौशनी का सेवन जरूर करना चाहिए

सूर्य की रौशनी से महालाभ-

- प्रातःकाल सूर्य की रौशनी में जरूर टहलें या बैठें
- सूर्य की रौशनी में बाल्टी में पानी भरकर रख दें, इस जल से स्नान करें
- रसोई घर में सूर्य का प्रकाश जरूर आये ऐसी व्यवस्था करें
- अगर घर में सूर्य का प्रकाश न आता हो तो इसकी व्यवस्था करें
- या कम से कम घर में दिन का पर्याप्त उजाला आना ही चाहिए
- यदि ऐसा नही होता है तो उस घर के लोगों का बीमार होने स्वाभाविक है

सूर्य की रोशनी दिलाएगी रुका हुआ धन-

-सुबह सूर्य उदय होने से पहले उठे और स्नान करके हल्के लाल रंग के कपड़े पहने
-एक लाल आसन पर बैठकर रुद्राक्ष की माला से 108 बार सूर्य के मन्त्र ॐ घृणि सूर्याय नमः का पाठ करें
-वहीं तांबे के लोटे में जल भरकर भी रखे और ॐ मन्त्र 27 बार उच्च स्वर में जपें
- फिर इस जल को सारे घर मे छिड़क दें
-ऐसा लगातार 27 दिन तक करें आपके कार्यों में तेज़ी आएगी और रुका हुआ धन भी जरूर मिलेगा

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गायत्री मंत्र से छात्रों को मिलेगा चमत्कारिक लाभगायत्री मंत्र से छात्रों को मिलेगा चमत्कारिक लाभ

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गायत्री मंत्र को वेदों में बड़ा ही चमत्कारिक और फायदेमंद बताया गया है. इसके साथ ही गायत्री मंत्र के विश्वामित्र ऋषि हैं तथा देवता सविता है. वही गायत्री मंत्र का नियमित रूप से सात बार जाप करने से व्यक्ति के आसपास नकारात्मक शक्तियां बिल्कुल नहीं आती है. इसके अलावा गायत्री मंत्र का अर्थ (उस प्राणस्वरूप दुखनाशक सुखस्वरूप  श्रेष्ठ तेजस्वी पापनाशक देवस्वरूप परमात्मा को हम अंतःकरण में धारण करें वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करें). गायत्री मंत्र के जाप से व्यक्ति का तेज बढ़ता है और सब मानसिक चिंताओं से मुक्ति मिलती है.

नकारात्मक शक्तियों का नाश-

- चमत्कारिक गायत्री मंत्र में चौबीस अक्षर हैं यह  24 अक्षर चौबीस शक्तियों-सिद्धियों के प्रतीक हैं
- इसी कारण ऋषियों ने गायत्री मंत्र को सभी प्रकार की मनोकामना को पूर्ण करने वाला बताया है
- गायत्री मंत्र का जाप सूर्योदय होने से दो घंटे पहले से लेकर सूर्योदय तथा सूर्यास्त से एक घंटे पहले से शुरू करके एक घण्टे बाद तक किया जा सकता है
-कोई भी व्यक्ति मानस कि जाप कभी भी कर सकता हैं लेकिन रात्रि में इस मंत्र का जाप नहीं करना चाहिए
- सुबह के समय कुशा के आसन पर बैठे पूर्वदिशा  तरफ गाय के घी का दिया जलाएं और रुद्राक्ष की माला से गायत्री मंत्र का जाप करें
-जाप से पहले तांबे के लोटे में गंगाजल भरकर अवश्य रखें जाप संपूर्ण होने पर घर में इसका छिड़काव करें

पूजा में बरतें सावधानियां-

-  गायत्री मंत्र का जाप हमेशा सुबह दोपहर या शाम के समय ही करें रात में  जाप करने से फायदा कम होगा
- गायत्री मंत्र का जाप हमेशा ढीले और साफ वस्त्र पहनकर ही करें
- गायत्री मंत्र जाप अनुष्ठान काल में घर में प्याज लहसुन मांस मदिरा आदि तामसिक चीजों का प्रयोग ना करें
- गायत्री मंत्र जाप हमेशा एक समय और एक आसन तथा एक निश्चित दिशा में ही करें

छात्रों को मिलेगा महावरदान-

- गायत्री मंत्र छात्रों के लिए बहुत ही लाभकारी है
- नियमित रूप से 108 बार गायत्री मंत्र का जप करने से बुद्धी प्रखर और किसी भी विषय को लंबे समय तक याद रखने की क्षमता बढ़ जाती है.
- गायत्री मंत्र का लाल या कुशा के आसन पर बैठकर  रुद्राक्ष की माला से तीन माला जाप करें
- ऐसा लगातार एक समय निश्चित करके ही करें जाप करने से पूर्व तांबे के लोटे में गंगा जल भर कर उसमें एक तुलसी पत्र डालें

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भगवान शिव के हर नाम का जाप करने से मिटेंगे हर संकटभगवान शिव के हर नाम का जाप करने से मिटेंगे हर संकट

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भगवान शिव के न जाने कितने ही रूप व नाम हैं और हर नाम की अपनी महिमा है. इसके अलावा इनके हर नाम में एक विशेष शक्ति छिपी है.वही यह शक्त‍ि तमाम समस्याओं को नष्ट कर जीवन में सुख का संचार करने वाली है. चलिए आपको बताते हैं भगवान शिव के अलग-अलग नामों को जपने का महत्व क्या है.

'विश्वम्भर' नाम से मिलेगा रोजगार-
नौकरी के लिए भगवान शिव के 'विश्वम्भर' नाम का प्रयोग करें. खाते-पीते, उठते-बैठते शिव का 'विश्वम्भर' नाम जपते रहें . आपकी रोजगार की समस्या जल्दी ही दूर हो सकती है .

'महेश्वर' नाम से चलेगा कारोबार-
कारोबार बढ़ाने के लिए भगवान शिव के 'महेश्वर' नाम का प्रयोग करें. इस नाम का जाप करते हुए काम पर निकलें. कारोबार की हर समस्या हल होगी और सफलता मिल सकती है .

'आशुतोष' से सुधरेगा जीवनसाथी का व्यवहार-
जीवनसाथी से अनबन को दूर करने के लिए भगवान शिव के 'आशुतोष' नाम का प्रयोग करें. सुबह उठने के बाद और रात में सोने के पहले इस नाम का जाप करें. आपके जीवनसाथी का बर्ताव बेहतर होने लगेगा.

'महादेव' नाम से पाएं अच्छी सेहत-
सुबह नहा-धोकर मंदिर में शिव जी को जल चढ़ाएं और 'महादेव' नाम का कम से कम 15 मिनट जाप करना चाहिए . इससे आपकी सेहत में अद्भुत सुधार होगा.

'रूद्र से सुधरेगा संतान का बर्ताव-
दोपहर के समय "रूद्र" नाम का 15 मिनट जाप करें. इसके बाद अपनी संतान का 11 बार नाम लेने से उसके व्यवहार में सुधार होगा.

'नटराज' देगा मान-सम्मान-
यश और कीर्ति पाने के लिए भगवान शिव के 'नटराज' नाम का प्रयोग करें. प्रदोष काल में शिव के 'नटराज' नाम का 108 बार जाप करें. इससे आपका मान-सम्मान बढ़ेगा, नाम और यश भी मिलेगा.

'बाबा' भगाएंगे बड़ी विपत्ति-
भगवान शिव के 'बाबा' नाम में बड़ी से बड़ी विपत्ति को टालने की शक्ति है. जितना ज्यादा शिव के इस नाम का जप करेंगे उतना ही ज्यादा लाभ होगा.

शिव खोलेंगे मोक्ष का द्वार-
मोक्ष प्राप्ति के लिए भगवान के 'शिव' नाम का ही जाप करना चाहिए . शिव जी का ध्यान करते हुए 'शिव' नाम का जाप करने का फल ज़रूर मिलता है. अगर किसी सिद्ध व्यक्ति से 'शिव' नाम का मंत्र मिले तो यह सबसे उत्तम होगा.

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Kalashtami Vrat 2020: कल है कालाष्टमी व्रत, जीवन में सफलता पाने के लिए करें यह उपायKalashtami Vrat 2020: कल है कालाष्टमी व्रत, जीवन में सफलता पाने के लिए करें यह उपाय

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कालाष्टमी के दिन भगवान शिव का विग्रह रूप माने जाने वाले कालभैरव की पूजा का विशेष महत्व है। उन्हें शिव का पांचवा अवतार माना गया है। इसके अलावा इनके दो रूप है पहला बटुक भैरव जो भक्तों को अभय देने वाले सौम्य रूप में प्रसिद्ध है तो वहीं काल भैरव अपराधिक प्रवृतियों पर नियंत्रण करने वाले भयंकर दंडनायक है।  भगवान भैरव के भक्तों का अनिष्ट करने वालों को तीनों लोकों में कोई शरण नहीं दे सकता है । काल भी इनसे भयभीत रहता है इसलिए इन्हें काल भैरव एवं हाथ में त्रिशूल, तलवार और डंडा होने के कारण इन्हें दंडपाणि भी कहा जाता है। वहीं आज भगवान भैरव के 5 चमत्कारिक उपायों को जानते हैं, जिन्हें करते ही शत्रु बाधा और दुर्भाग्य दूर होता है और सौभाग्य जाग जाता है।

भगवान शिव की पूजा
कालाष्टमी के दिन भगवान शिव की पूजा करने से भी भगवान भैरव का आशीर्वाद मिलता है, क्योंकि भगवान भैरव की उत्पत्ति भगवान शिव के अंश के रूप में हुई थी। इसके अलावा कालाष्टमी के दिन 21 बिल्वपत्रों पर चंदन से 'ॐ नम: शिवाय' लिखकर शिवलिंग पर चढ़ाएं। इस विधि से पूजन करने पर भगवान भैरव प्रसन्न होंगे और आपकी मनोकामनाएं पूरी होंगी।

भगवान भैरव के मंदिर जाएं
कालाष्टमी के दिन भगवान भैरव के मंदिर में जाकर सिंदूर, सरसों का तेल, नारियल, चना, चिरौंजी, पुए और जलेबी चढ़ाकर भक्ति भाव से पूजन करें।

सरसो के तेल का दीपक जलाएं
काल भैरव जी को प्रसन्न करने के लिए, उनकी कृपा पाने के लिए कालाष्टमी के दिन से भगवान भैरव की प्रतिमा के आगे सरसो के तेल का दीपक जलाएं और श्रीकालभैरवाष्टकम् का पाठ करें। मनोकामना पूर्ण होने तक प्रतिदिन इस उपाय को भक्ति भाव के साथ करें। 

40 दिनों तक काल भैरव का दर्शन करें
कालाष्टमी के दिन से लेकर 40 दिनों तक बार बार काल भैरव का दर्शन करें। इस उपाय को करने से भगवान भैरव प्रसन्न होंगे और आपकी मनोकामना को पूर्ण करेंगे। भैरव की पूजा के इस नियम को चालीसा कहते हैं जो चन्द्रमास के 28 दिनों और 12 राशियां को जोड़कर बनता है। 

काले कुत्ते को मीठी रोटी खिलाएं
कालाष्टमी के दिन भगवान भैरव को प्रसन्न करने के लिए काले कुत्ते को मीठी रोटी खिलाएं। अगर काला कुत्ता उपलब्ध न हो तो किसी भी कुत्ते को खिलाकर यह उपाय कर सकते हैं। इस उपाय को करने से न सिर्फ भगवान भैरव बल्कि शनिदेव की भी कृपा बरसेगी। 

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आज यशोदा जयंती है। हिन्दू पंचांग के मुताबिक , प्रति वर्ष फाल्गुन कृष्ण पक्ष की षष्ठी को प्रभु श्री कृष्ण की मां यशोदा की जयंती मनाई जाती है। इसके अलावा आज के दिन विधि-विधान से पूजन करने वाले भक्तों के जीवन से पाप नष्ट होते हैं और सु्ख की प्राप्ति होती है। साथ ही भूत-प्रेतों से छुटकारा मिलता है। वही यशोदा जयंती के अवसर पर श्री कृष्ण मंदिरों में भोर से भक्तों का दर्शन व पूजन के लिए तांता लग जाता है।  इसके अलावा पौराणिक कथा के अनुसार एक समय में यशोदा ने श्रीहरि की घोर तपस्या की, उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर विष्णु ने उन्हें वर मांगने को कहा। 

यशोदा ने कहा हे ईश्वर! मेरी तपस्या तभी पूर्ण होगी जब आप मुझे, मेरे पुत्र रूप में प्राप्त होंगे। भगवान ने प्रसन्न हो उन्हें कहा कि आने वाले काल में मैं वासुदेव एवं देवकी के घर मैं जन्म लूंगा परन्तु मुझे मातृत्व का सुख आपसे ही प्राप्त होगा। इसके साथ ही समय के साथ ऐसा ही हुआ और कृष्ण देवकी व वासुदेव की आठवीं संतान के रूप में प्रकट हुए। इस दिन कृष्ण व यशोदा के विधिवत पूजन, व्रत व उपाय से निसंतान दंपत्ति को संतान सुख प्राप्त होता है, गृहक्लेश से मुक्ति मिलती है व संपत्ति से लाभ मिलता है।

यशोदा जयंती व्रत विधि
संपत्ति से लाभ हेतु गेहूं से भरा तांबे का कलश कृष्ण मंदिर में चढ़ाएं।
गृहक्लेश से मुक्ति हेतु यशोदा-कृष्ण पर चढ़ी मौली घर के मेन गेट पर बांधें। 
गरीबों को दान-पुण्य करें। इससे जीवन में आने वाले कष्टों से मुक्ति मिलती है। 
संतान सुख की प्राप्ति हेतु यशोदा-कृष्ण पर चढ़ा कोंहड़ा (कद्दू) नाभि से वारकर चौराहे पर रखें।
घर के मुख्य द्वार पर स्वास्तिक व अोम बनाने से भूत-प्रेतों से छुटकारा मिलता है। 

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आध्यात्मिक ज्ञान के जरिये से समझिये ब्रह्म और माया के बीच का रहस्यआध्यात्मिक ज्ञान के जरिये से समझिये ब्रह्म और माया के बीच का रहस्य

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माया मनुष्य के जीवन का आधार है। संसार में जो दिखता है, वह सब माया है। परन्तु इसी में संसार का अस्तित्व है। इसके अलावा माया ब्रह्म की शक्ति है, जो सत्य को ढक लेती है। माया का अर्थ है- जो अनुभव तो किया जा सके, परन्तु उसका कोई अस्तित्व न हो। आभासी दुनिया इसी का नाम है। इसका अर्थ एक ऐसी दुनिया से है, जो काल्पनिक होकर भी पूरी तरह सच प्रतीत  होती है। इसके साथ ही विज्ञान वर्चुअल रियलिटी और कंप्यूटर तकनीक से ऐसी  दुनिया बनाता है, जिससे आभासी संसार के असली होने की अनुभूति होती है। वहीं एक कृत्रिम और त्रिआयामी वातावरण बनाया जाता है तथा उसे इस तरह पेश किया जाता है कि निस्संदेह उसे ही वास्तविक समझा और स्वीकार कर लिया जाता है।
 
इसे इस रूप में भले ही स्वीकार किया जाता हो, पर असल में वह बनाई गई एक कृत्रिम दुनिया है या माया है, जो हमारी सोच को ढक देती है और हम मान बैठते हैं कि सब कुछ हम ही कर रहे हैं। इसके अलावा विज्ञान भी यही कहता है कि संसार पदार्थों से बना है और पदार्थ की अंतिम इकाई परमाणु या तरंग है। यानी यह एक विद्युत प्रवाह है और कुछ नहीं। सुख या दुख, हमें जो भी अनुभव होता है, वह सब कहीं और नहीं, बल्कि विचार और भाव जगत में होता है, जिसे चेतना कहते हैं। जिसे हम देखते और महसूस करते हैं, वह विराट ईश्वरीय कंप्यूटर प्रोग्राम की तरह है। हम लोग मिलकर इसे चला रहे हैं। आपको बता दें की  आभासी वास्तविकता एक ऐसा खेल या माया है, जिसे अपने दिमाग में हम सब खेल रहे हैं। जिस दिन दिमाग काम बंद करेगा, उस दिन पता चलेगा कि जिसे हम सच समझ रहे थे, वह सिर्फ भ्रम था और कुछ नहीं। 

यह भ्रम ही दुखों की जड़ है। जब हम किसी काम में सफल होते हैं, तो कहने लगते हैं हम कितने काबिल हैं, पर सच तो एक ही है। जब अच्छा काम होता है तब भी वही विद्यमान है, जो गलत काम होने पर रहता है। संसार में जो दिखता है, वह सब माया है। दरअसल संसार का दूसरा नाम ही माया है। जब हम किसी चकित कर देने वाली घटना को देखते हैं, तो उसे ईश्वर की माया कह देते हैं। माया ब्रह्म की ही शक्ति है, जो सत्य को ढक लेती है। उसकी जगह किसी दूसरी चीज के होने का भ्रम पैदा कर देती है, जैसे रस्सी से सांप का भ्रम हो जाता है। माया ब्रह्म की शक्ति तो है, पर ब्रह्म पर माया का प्रभाव नहीं पड़ता है। इसके साथ ही जादूगर के खेल की तरह माया दर्शकों को भ्रमित कर सकती है, पर खुद भ्रम में नहीं होती। इसलिए हमारे ऋषि-मुनियों और विद्वानों-मनीषियों ने कहा है कि माया से बचकर रहना चाहिए। समय-समय पर आत्मावलोकन करते रहना चाहिए कि कहीं हमारे मन-मस्तिष्क पर माया हावी तो नहीं होती जा रही है। आखिर कहा भी गया है- 'माया महाठगिनी हम जानी।'

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गायत्री मंत्र 'ॐ भूर्भव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।' हिन्दू मान्यताओं के अनुसार इस मंत्र को वेदों में बड़ा ही चमत्कारी और फायदेमंद बताया गया है। इस मंत्र का जप आमतौर पर उपनयन संस्कार के बाद किया जाता है। इसके अलावा इस मंत्र के बारे में 7 ऐसी बातें जानिए जो आपको बताएगा कि क्यों हर किसी को गायत्री मंत्र का जप करना चाहिए। वेदों की कुल संख्या चार है। इन चारों वेदों में गायत्री मंत्र का उल्लेख किया गया है। इस मंत्र के ऋषि विश्वामित्र हैं और देवता सविता हैं। ऐसा माना जाता है कि इस मंत्र में इतनी शक्ति है कि नियमित तीन बार इसका जप करने वाले व्यक्ति के आस-पास नकारात्मक शक्तियां यानी भूत-प्रेत और ऊपरी बाधाएं नहीं फटकती हैं। गायत्री मंत्र के अर्थ पर गौर करेंगे तो पाएंगे कि इस मंत्र के जप से कई प्रकार का लाभ मिलता है।

यह मंत्र कहता है 'उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अन्तःकरण में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे।' यानी इस मंत्र के जप से बौद्धिक क्षमता और मेधा शक्ति यानी स्मरण की क्षमता बढ़ती है। इससे व्यक्ति का तेज बढ़ता है साथ ही दुःखों से छूटने का रास्ता मिलता है।इसके अलावा गायत्री मंत्र में चौबीस अक्षर हैं। यह चौबीस अक्षर चौबीस शक्तियों-सिद्धियों के प्रतीक हैं। यही कारण है कि ऋषियों ने गायत्री मंत्र को भौतिक जगत में सभी प्रकार की मनोकामना को पूर्ण करने वाला बताया है।

आर्थिक मामलों परेशानी आने पर गायत्री मंत्र के साथ श्रीं का संपुट लगाकर जप करने से आर्थिक बाधा दूर होती है। वहीं जैस 'श्रीं ॐ भूर्भव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात् श्री'। छात्रों के लिए यह मंत्र बहुत ही फायदेमंद है। इसके अलावा स्वामी विवेकानंद ने कहा है कि गायत्री सद्बुद्धि का मंत्र है, इसलिऐ उसे मंत्रो का मुकुटमणि कहा गया है।" इसके साथ ही नियमित 108 बार गायत्री मंत्र का जप करने से बुद्धि प्रखर और किसी भी विषय को लंबे समय तक याद रखने की क्षमता बढ़ जाती है। यह व्यक्ति की बुद्धि और विवेक को निखारने का भी काम करता है।

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Mahashivratri 2020: जब शिवजी लेकर आये बारात तो, क्यों घरवालों ने किया शादी से इंकारMahashivratri 2020: जब शिवजी लेकर आये बारात तो, क्यों घरवालों ने किया शादी से इंकार

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महाशिवरात्रि का पर्व देवों के देव महादेव और मां पार्वती को समर्पित है। इसके अलावा इस दिन शिवभक्त भोलेनाथ की आराधना में व्रत रखकर उनकी उपासना करते हैं। शास्त्रों के मुताबिक , ऐसा माना जाता है कि महाशिवरात्रि के दिन ही भगवान शिव और मां पार्वती का विवाह हुआ था। इसके अलावा इस संबंध में शास्त्रों में बड़ी ही रोचक कथा है, जो इस प्रकार है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार देवी पार्वती भगवान शिव से विवाह करना चाहती थी और सभी देवी देवता भी यही चाहते थे कि पर्वत राजकन्या पार्वती का विवाह शिव से हो जाए। वहीं देवताओं ने देवी पार्वती से विवाह का प्रस्ताव लेकर कन्दर्प को भगवान शिव के पास भेजा, जिसे शिव ने ठुकरा दिया और उसे अपनी तीसरी आंख से भस्म कर दिया।

इसके अलावा देवी पार्वती ने तो भोलेनाथ को अपना पति मान ही लिया था। पार्वती ने शिव को अपना वर बनाने के लिए कठोर तपस्या शुरू की। इसके साथ ही उनकी तपस्या से सभी जगह हाहाकार मच गया। बड़े बड़े पर्वतों की नींव भी डगमगाने लगी। तब शिव ने अपनी आंख खोली और पार्वती से कहा कि वो किसी राजकुमार से शादी कर लें। क्योंकि उनके साथ रहना सरल नहीं हैं। मगर पार्वती ने कहां कि यदि वो विवाह करेंगी तो सिर्फ शिव से ही करेंगी। पार्वती का प्रेम देख शिव उनसे विवाह करने के लिए तैयार हो गए। शिव जब पार्वती से विवाह करने गए तब उनके साथ भूत प्रेत और आत्माएं भी साथ में गई। जब शिव की अनोखी बारात पार्वती के घर पहुंची तब सभी देवता हैरान हो गए। मां पार्वती भी भोलेनाथ की बारात देखकर डर गईं।

आपकी जानकारी के लिए बात दें की शिव को इस विचित्र रूप में पार्वती की मां स्वीकार नहीं कर पाईं और उन्होंने अपनी बेटी का हाथ देने से मना कर दिया। वही स्थितियां बिगड़ती देख मां पार्वती ने शिव से प्रार्थना की कि वो उनके रीति रिवाजों के मुताबिक तैयार होकर आएंं शिव ने उनकी प्रार्थना स्वीकार की और सभी देवताओं को फरमान दिया कि वो उनको खूबसूरत से तैयार करें। ये सुन सभी देवता हरकत में आ गए और उन्हें तैयार करने में जुट गए। शिव को दैवीय जल से नहलाया गया और शेशम के पुष्पों से सजाया गया। इसके अलावा जब शिव इस दिव्य रूप में पहुंचे तो पार्वती की मां ने उन्हें तुरंत ही स्वीकार कर लिया और ब्रह्मा जी की उपस्थिति में विवाह समारोह आरंभ हो गया। मां पार्वती और भोलेनाथ ने एक दूसरे को वर माला पहनाई और ये विवाह संपन्न हुआ।

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जानिये क्या है मौत के करीब आने के संकेत, शास्त्रों में भी है इसका वर्णनजानिये क्या है मौत के करीब आने के संकेत, शास्त्रों में भी है इसका वर्णन

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मनुष्य का जन्म नौ महीने तक माता के गर्भ में रहने के बाद होता है। और ठीक इसी तरह मृत्यु आने से नौ महीने पहले ही कुछ ऐसी घटनाएं होने लगती हैं जो इस बात का संकेत देती हैं। वहीं यह संकेत इतने सूक्ष्म होते हैं कि हम अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में उन पर ध्यान ही नहीं देते और जब मृत्यु एकदम करीब आ जाती है तो पता लगता है कि अब देर हो चुकी है, कई काम अधूरे रह गए हैं। इसके अलावा ऐसी स्थिति में अंतिम क्षण में मन भटकने लगता है और मृत्यु के समय कष्ट की अनुभूति होती है। इसके अलावा पुराणों के अनुसार अगर मृत्यु के समय मन शांत और इच्छाओं से मुक्त हो तो बिना कष्ट से प्राण शरीर त्याग देता है और ऐसे व्यक्ति की आत्मा को परलोक में सुख की अनुभूति होती है।इसके अलावा भारतीय-योग विज्ञान के मुताबिक मनुष्य के शरीर में सात चक्र होते हैं। सहस्रार: शीर्ष चक्र, आज्ञा: ललाट चक्र, विशुद्ध: कंठ चक्र, अनाहत: ह्रदय चक्र, मणिपूर: सौर स्नायुजाल चक्र, स्वाधिष्ठान: त्रिक चक्र, मूलाधार: आधार चक्र जब मनुष्य प्राण त्याग करता है जो इन्हीं चक्रों में से किसी चक्र से आत्मा शरीर से बाहर निकलती है। योगी, मुनि और पुराणों की मानें तो मृत्यु का समय करीब आने पर सबसे पहले नाभि चक्र में गतिविधियां शुरु हो जाती हैं। नाभि चक्र यानी की मणिपुर ध्यान चक्र टूटने लगता है। 

नाभि शरीर का केन्द्र स्थान होता है जहां से जन्मकाल में शरीर की रचना शुरू होती है। इसी स्थान से प्राण शरीर से अलग होना शुरू करता है, इसलिए मौत के करीब आने की पहली आहट को नाभि चक्र के पास महसूस किया जा सकता है।यह चक्र एक दिन में नहीं टूटता है, इसके टूटने की क्रिया लंबे समय तक चलती है और जैसे-जैसे चक्र टूटता जाता है मृत्यु के करीब आने के दूसरे कई लक्षण प्रकट होने लगते हैं। मृत्यु पूर्व जिस प्रकार के अनुभव और लक्षण प्रकट होने लगते हैं इसका उल्लेख कई ग्रंथों में किया गया है। जैसे गरुड़ पुराण, सूर्य अरुण संवाद, समुद्रशास्त्र एवं कापालिक संहिता इसके प्रमुख स्रोत माने जाते हैं।इसके साथ ही इन ग्रंथों में बताया गया है कि मृत्यु का समय समीप आने पर व्यक्ति को कई ऐसे संकेत मिलने लगते हैँ जिनसे यह जाना जा सकता है कि शरीर त्यागने का समय अब करीब आ गया है।इन ग्रथों में जो सबसे प्रमुख लक्षण बताया गया है उसके मुताबिक मृत्यु के समीप आने पर व्यक्ति को अपनी नाक दिखाई देना बंद हो जाती है। इसके अलावा जन्म के साथ हर व्यक्ति अपनी हथेली में कई रेखाएं लेकर आता है। हस्तरेखा के जानकर कहते हैं कि यह ब्रह्मा का लेख होता है जिसमें व्यक्ति की सांसें यानी वह कितने दिन जीवित रहेगा यह लिखा होता है।हस्तरेखा पढ़ने वाले इन्हीं रेखाओं को देख पढ़कर व्यक्ति की भविष्यवाणी करते हैं। यदि आप भी अपनी हथेली में मौजूद रेखाओं को गौर से देखेंगे तो पाएंगे कि यह रेखाएं समय-समय पर बदलती रहती हैं। जब आप गंभीर रूप से बीमार होते हैं तो रेखाएं धुंधली होने लगती हैं।

इसके अलावा समुद्रशास्त्र कहता है कि जब मृत्यु करीब आ जाती है तो हथेली में शामिल रेखाएं अस्पष्ट और इतनी हल्की हो जाती है कि यह ठीक से दिखाई भी नहीं देती हैं। वहीं ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक जिस तरह घर में नए सदस्य के आने की खबर मिलने पर हम मनुष्य उत्साहित रहते हैं और उनके स्वागत की तैयारी करते हैं। कुछ इसी तरह जब कोई व्यक्ति संसार को छोड़कर परलोक की यात्रा पर जाने वाला होता है तो परलोक गए उनके पूर्वज और आत्माएं उत्साहित रहते हैं और अपनी दुनिया में नए सदस्य के आने की खुशी में रहते हैं।इसलिए मृत्यु के करीब पहुंच चुके व्यक्ति को अपने आस-पास कुछ सायों के मौजूद होने का एहसास होता रहता है। इसके अलावा ऐसे व्यक्तियों को अपने पूर्वज और कई मृत व्यक्ति नजर आते रहते हैं।कई बार तो व्यक्ति को इन चीजों का इतना गहरा एहसास होता है कि वह डर जाता है। ज्योतिषशास्त्र के मुताबिक मणिपुर ध्यानचक्र के कमजोर होने से आत्मबल घटने लगता है इसलिए व्यक्ति को इस तरह की अनुभूतियां होती हैं।स्वप्नशास्त्र के अनुसार सपने कई बार भविष्य में होने वाली घटनाओं का संकेत देते हैं। सूर्य अरुण संवाद एवं स्वप्नशास्त्र में बताया गया है कि जब किसी व्यक्ति की मृत्यु करीब आने वाली होती है तो उसे अशुभ स्वप्न आने लगते हैं। व्यक्ति खुद को गधे पर सवार होकर यात्रा करते हुए देखता है। सपने में मृत व्यक्ति और पूर्वजों का दिखाई देना भी मृत्यु के करीब आने का संकेत होता है। खुद को बिना सिर के देखना भी मृत्यु नजदीक आने का इशारा होता है।ऐसा बताया जाता है कि परछाई हमेशा साथ चलती है इसलिए अपने कई बार अपने आस-पास अपनी परछाई को देखा होगा।

परन्तु समुद्रशास्त्र और सूर्य अरुण संवाद के मुताबिक जब व्यक्ति की आत्मा उसे छोड़कर जाने की तैयारी करने लगती है तो परछाई भी साथ छोड़ देती है। ऐसा नहीं है कि उस समय व्यक्ति की परछाई नहीं बनती है। परछाई तो उस समय भी बनती है परन्तु व्यक्ति की दृष्टि अपनी परछाई को देख नहीं पाती है क्योंकि आंखें परछाई देखने की ताकत खो देती है।गरुड़ पुराण कहता है कि जब बिल्कुल मृत्यु करीब आ चुकी होती है तो व्यक्ति को अपने करीब बैठा इंसान भी नजर नहीं आता है। ऐसे समय में व्यक्ति के यम के दूत नजर आने लगते हैं और व्यक्ति उन्हें देखकर डरता है।ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक  जब तक सांसें चलती हैं तब तक जीवन है जैसे ही सांस रुक जाती है व्यक्ति मृत घोषित कर दिया जाता है। इस तरह जीवन का आधार सांसें हैं इसलिए जब मनुष्य पैदा होता है तब से मृत्यु तक उसकी सांसें लगातार चलती रहती हैं। कोई न तो सांसों को बढ़ा सकता है और न कम कर सकता है। इसके अलावा कोशिश करने पर कुछ देर के लिए चाहें तो सांसें रोक सकते हैं परन्तु सांसों पर जीव का कोई अधिकार नहीं है। गरुड़ पुराण कहता है कि जब तक जीवन चक्र चलता रहता है तब तक सांसें सीधी चलती हैं। लेकिन जब किसी व्यक्ति की मृत्यु करीब आ जाती है तो उसकी सांसें उल्टी यानी उर्ध्व चलने लगती हैं।

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होली का त्योहार आने में अब थोड़ी ही समय बाकी रह गया है. इसके अलावा प्राचीन विजयनगर साम्राज्य की राजधानी हम्पी में 16वीं शताब्दी का चित्र मिला है जिसमें होली के पर्व को उकेरा गया है. इसके अलावा ऐसे ही विंध्य पर्वतों के निकट स्थित रामगढ़ में मिले एक ईसा से 300 वर्ष पुराने अभिलेख में भी इसका उल्लेख मिलता है. वहीं इस वर्ष 9 मार्च को होलिका दहन होगा और 10 मार्च को रंग वाली होली खेली जा सकती है.

इसके अलावा होली से जुड़ी अनेक कथाएं इतिहास-पुराण में पाई जाती हैं. इसमें हिरण्यकश्यप और भक्त प्रह्लाद की कथा सबसे खास है. रंगवाली होली से एक दिन पहले होलिका दहन करने की परंपरा है. फाल्गुन मास की पूर्णिमा को बुराई पर अच्छाई की जीत को याद करते हुए होलिका दहन (Holika Dahan) किया जाता है.  इसके अलावा कथा के मुताबिक  असुर हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था, परन्तु यह बात हिरण्यकश्यप को बिल्कुल अच्छी नहीं लगती थी. 

बालक प्रह्लाद को भगवान कि भक्ति से विमुख करने का कार्य उसने अपनी बहन होलिका को सौंपा, जिसके पास वरदान था कि अग्नि उसके शरीर को जला नहीं सकती है . इसके अलावा भक्तराज प्रह्लाद को मारने के उद्देश्य से होलिका उन्हें अपनी गोद में लेकर अग्नि में प्रविष्ट हो गयी, परन्तु  प्रह्लाद की भक्ति के प्रताप और भगवान की कृपा के फलस्वरूप खुद होलिका ही आग में जल गई. अग्नि में प्रह्लाद के शरीर को कोई नुकसान नहीं हुआ.

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पाना चाहते है मुसीबतों से छुटकारा तो, ऐसे करें चन्द्रमा और मंगल देव को प्रसन्नपाना चाहते है मुसीबतों से छुटकारा तो, ऐसे करें चन्द्रमा और मंगल देव को प्रसन्न

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मंगल को नवग्रहों में सेनापति का दर्जा दिया गया है.इसके साथ ही मंगल शक्ति, ऊर्जा, आत्मविश्वास और पराक्रम का स्वामी है. वहीं इसका मुख्य तत्त्व अग्नि तत्व है और इसका मुख्य रंग लाल है. इसकी धातु ताम्बा है और जौ लाल मसूर आदि इसकी दान के अनाज है. इसकी राशियां मेष और वृश्चिक हैं. इसकी अलावा मंगल मकर राशी में उच्च के होते है और कर्क राशी में नीच के होते हैं. वहीं चन्द्रमा पीड़ित होने पर मन खराब होने के साथ-साथ आत्मविश्वास और साहस भी कमजोर हो जाता है. इसके साथ ही  व्यक्ति अक्सर कर्ज और मुकदमेबाजी में फंसा रहता है.

चन्द्रमा और मंगल देव को कैसे करें प्रसन्न?

- मंगलवार का उपवास रखें और इस दिन नमक का सेवन न करें.
- नित्य प्रातः और सायंकाल हनुमान चालीसा का पाठ करें.
- सोमवार के दिन एक लोटे में कच्चा दूध काला तिल और पानी  मिलाकर शिवलिंग पर चढ़ाएं.
- सोमवार के दिन शाम के समय सफेद वस्तुओं का दान जरूरतमंद स्त्रियों को करें.
- मंगल के मंत्र का जाप मध्य दोपहर करने से मंगल का अशुभ प्रभाव समाप्त हो जाता है.

चन्द्रमा का मन्त्र

- ॐ सोम सोमाय नमः
- और नमः शिवाय मन्त्र का यथा सम्भव जाप करें

मंगल के मंत्र

- ॐ क्रां क्रीं क्रौं सः भौमाय नमः
- धरणी गर्भ संभूतं विद्युत् कांति समप्रभम
कुमारं शक्ति हस्तं तं मंगल प्रणमाम्यहम

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शनि देव को प्रसन्न करने के लिए करें इस मन्त्र का जापशनि देव को प्रसन्न करने के लिए करें इस मन्त्र का जाप

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भगवान् शनि देव ग्रहों में न्यायकर्ता माने जाते हैं. इसके अलावा हर व्यक्ति के द्वारा किये जाने वाले कार्य और उसके फल के पीछे शनि ही हैं. वहीं व्यक्ति की आजीविका, रोग और संघर्ष शनि के द्वारा ही निर्धारित होते हैं. शनि को प्रसन्न करके व्यक्ति जीवन के कष्टों को कम कर सकता है. इसके साथ ही करियर और धन के मामले में सफलता पा सकता है. शनि देव की पूजा अगर समझकर और सावधानी के साथ की जाए तो तुरंत फलदायी होती है.

शनि देव की पूजा में इन बातों का रखें ध्यान

- शनि देव की पूजा शनि की मूर्ति के समक्ष न करें
- शनि के उसी मंदिर में पूजा आराधना करनी चाहिए जहां वह शिला के रूप में हों
- प्रतीक रूप में शमी के या पीपल के वृक्ष की आराधना करनी चाहिए.
- शनि देव के समक्ष दीपक जलाना सर्वश्रेष्ठ है, परन्तु तेल उड़ेल कर बर्बाद नहीं करना चाहिए.
- जो लोग भी शनि देव की पूजा करना चाहते हैं , उनको अपना आचरण और व्यवहार अच्छा रखना चाहिए.

किस प्रकार करें शनि देव की पूजा?

- शनिवार के दिन पहले शिव जी की या कृष्ण जी की उपासना करें.
- उसके बाद सायंकाल शनि देव के मन्त्रों का जाप करें
- पीपल के वृक्ष की जड़ में जल डालें,उसके बाद वृक्ष के पास सरसों के तेल का दीपक जलाएं.
- किसी गरीब व्यक्ति को एक वेला का भोजन जरूर कराएं.
- इस दिन भूलकर भी तामसिक आहार ग्रहण न करें.

शनि देव को प्रसन्न करने के मंत्र

- "ॐ शं शनैश्चराय नमः"
- "ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः"
- "ॐ शन्नो देविर्भिष्ठयः आपो भवन्तु पीतये। सय्योंरभीस्रवन्तुनः।।"

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माँ लक्ष्मी के इस महा मन्त्र के जाप से होने लगेगी धन की वर्षामाँ लक्ष्मी के इस महा मन्त्र के जाप से होने लगेगी धन की वर्षा

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श्रीहरी विष्णु की पत्नी देवी महालक्ष्मी धन, संपत्ति, वैभव तथा सुख की अधिष्ठात्री देवी हैं. इसके अलावा पौराणिक मतानुसार, देवी लक्ष्मी का जन्म समुद्रमंथन से हुआ था. इसके साथ ही समुद्र से उत्त्पन्न समस्त अमूल्य रत्न, जैसे शंख, मोती व कौड़ी की अधिष्ठात्री देवी महालक्ष्मी ही हैं. कौड़ी एक रत्न है जो की धन के समान ही मूल्यवान हैं. इसके साथ ही  प्राचीन काल में कौड़ी रत्न से ही व्यापार, क्रय-विकार इत्यादि का कार्य होता था. आपकी जानकारी के लिए बता रहे हैं कि रोड़पति से कैसे बने अमीर. लेकिन उससे पहले जानते हैं कैसे आपका आने वाला कल होगा सुन्दर..

आने वाला कल कैसे हो सुंदर-

1. पानी में थोड़ा सा दही मिलकर स्नान करें.

2. नहाते समय लक्ष्मी-नारायण का ध्यान करें.

3.  लक्ष्मी नारायण मंदिर में अथवा अपने घर के पूजाघर में लक्ष्मी-नारायण की पूजा करके उनपर गुलाबी फूल चढ़ाएं.

4. "श्रीं जगतप्रसूते नमः" मंत्र का जाप करें

5. लक्ष्मी-नारायण पर चढ़े चंदन से मस्तक पर तिलक करें

6. लक्ष्मी-नारायण पर चढ़ी खीर किसी कन्या को खिलाएं.

इससे आपके आपके बिज़नस में मुनाफा होगा, घर से पैसों का अभाव खत्म होगा और गरीबी समाप्त होगी. शब्द "कौड़ी" हमारे जीवन के कार्य-कलाप से जुड़ा है. व्यक्ति इसकी पूजा करता है. महिलाएं इसे पिरोकर आभूषणों की भांति पहनती है. तथा इससे जुआ भी खेला जाता है. इसके अलावा हम आपको बताने जा रहे हैं कौड़ी का सही अर्थ और कौड़ी के साथ धन का कनेक्शन.

* कहावत है - "कौड़ियों के मोल" अर्थात बहुत कम वैल्यू में खरीदना - अर्थात कौड़ी का अर्थ है किसी की औकात.
* सनातन धर्म में किसी के नाम से पहले श्री, श्रीमती, श्रीमान, सुश्री लगते है....  
* कौड़ी की तरह श्री का अर्थ भी किसी व्यक्ति की आर्थिक स्थिति और सम्मान को दर्शाता है ...
* जिसके पास धन मान सम्मान नहीं है वो लक्ष्मीविहीन और श्रीहीन है.
* श्री ही लक्ष्मी लक्ष्मी है - इसी कारण लक्ष्मी का नाम श्रीदेवी, श्रीप्रदा.... है,
* लक्ष्मी का बीज मंत्र भी "श्रीं" है
* जिसके पास कौड़ी अर्थात धन और मानसम्मान है वो लक्ष्मीकांत और श्रीकांत बन जाता है अर्थात विष्णु की तरह धनवान और श्रीमन बन जाता है.
* शुक्रवार का दिन लक्ष्मी-नारायण पूजन के लिए श्रेष्ठ रेहता है.
* दीपावली, धनतेरस, शरद पूर्णिमा के अलावा शुक्रवार के दिन भी कौड़ी का प्रयोग करना अच्छा रहता है.

रोड़पति से कैसे बने करोड़पति
शाम के समय सूर्यास्त से पहले घर की उत्तर दिशा में लक्ष्मी का चित्र स्थापित करें. वहीं गाय के घी में इत्र मिलाकर दीपक करें, मोगरे की अगरबत्ती जलाएं, अबीर से तिलक करें, दहि में शक्कर मिलाकर भोग लगाएं. इसके बाद महालक्ष्मी पर हल्दी चढ़ी हुई 22 कौड़ी चढ़ाएं. और स्फटिक की माला से "ॐ श्रीं नमः" मंत्र का जाप करें. जाप पूरा होने के बाद 11 कौड़ी लाल कपड़े में बांधकर तिजोरी में रखें और 11 कौड़ी को जल प्रवाह करे दें.

राशि अनुसार करें ये उपाय

मेष: चंदन से तिजोरी "श्रीं" लिखें.

वृष: महालक्ष्मी पर चढ़ा दही शक्कर खाएं.   

मिथुन: पक्षियों के लिए चावल रखें.

कर्क: सफ़ेद गाय को जौ खिलाएं.

सिंह: किसी भिखारी को रेशमी कपड़ा दान करें.

कन्या: कंठ पर इत्र लगाएं.

तुला: मुलतानी मिट्टी का इस्तेमाल करें.

वृश्चिक: बेडरूम में कर्पूर जलाएं.

धनु: शाम के समय तुलसी पर शुद्धघी का दीपक करें.

मकर: नाभि पर इत्र लगाएं.

कुंभ: लक्ष्मी मंदिर में आटा दान करें.

मीन: सफ़ेद गाय को मीठे चावल खिलाएं.

मनी मंत्र
पैसे की तंगी को खतम करने के लिए महालक्ष्मी का ध्यान करके इच्छानुसार देसी खंड और श्रीसूक्त का पाठ करें. इसके बाद चड़ी हुई देसी खंड किसी सुहागन ब्राह्मणी को दान दें. 

महाउपाय-
अगर आपका धन मंदा पड़ गया है तो 12 बुधवार इस प्रयोग को अपनाए. 12 कौड़ी जलाकर उसकी राख़ बना लें और उस राख को हरे कपड़े में बांधकर जलप्रवाह करें.

पाना चाहते है मुसीबतों से छुटकारा तो, ऐसे करें चन्द्रमा और मंगल देव को प्रसन्न

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शनि की स्थिति जानिये बिना कुंडली और हाथ की रेखा देखेशनि की स्थिति जानिये बिना कुंडली और हाथ की रेखा देखे

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हर ग्रह की अपनी विशेषता होती है. इसके साथ ही उसके अच्छे और बुरे लक्षण होते हैं, जो व्यक्ति के ऊपर दिखते हैं.इसके अलावा  इन लक्षणों को समझकर हम उस व्यक्ति के ग्रहों को जान सकते हैं. इसके लिए व्यक्ति के स्वभाव और आदतों पर ध्यान देना पड़ सकता है .वहीं  शनि के लक्षण बहुत साफ होते हैं, जिसको पहचानना सरल होता है.

कैसे जानें कि हमारा शनि अशुभ है?-

- व्यक्ति कठोर वाणी और स्वभाव का होता है.
- व्यक्ति के बाल रूखे होते हैं.
- व्यक्ति लापरवाह और कामचोर स्वभाव का होता है, काम टालता रहता है.
- आम तौर पर जीवन में किसी बड़ी घटना के बाद जीवन में बदलाव आ जाता है.
- जीवन में निम्न कर्म तथा गलत कार्य में संलग्न रहता है.
- कदम कदम पर संघर्ष का सामना करना पड़ता है
- एक स्थिति में जीवन में अकेलापन सा महसूस होता है

कैसे जाने कि हमारा शनि हमारे लिए शुभ है?-

- व्यक्ति लम्बा और दुबला पतला होता है.
- व्यक्ति के बाल घने होते हैं.
- व्यक्ति अनुशासित और कर्मठ होता है. खूब परिश्रम से आगे बढ़ जाता है.
- आम तौर पर जीवन के मध्य भाग में अध्यात्मिक भी हो जाता है.
- कानून,परिवहन या अध्यात्म से सम्बन्ध रखता है.
- विलम्ब से ही सही पर खूब धन प्राप्त करता है.

कैसे जानें कि वर्तमान में शनि शुभ परिणाम नहीं दे रहा है?-

- घरों में सीलन आने लगे
- बिना कारण चोट लगने लगे
- हड्डियों में दर्द होने लगे
- बाल जरूरत से ज्यादा झड़ने लगें

अगर शनि अशुभ हो तो क्या उपाय करने चाहिए?-

- आचरण और आहार व्यवहार शुद्ध रखना चाहिए
- स्वक्छ्ता और धर्म का ठीक तरीके से पालन करना चाहिए .
- भगवान शिव की या भगवान कृष्ण की पूजा करनी चाहिए.
- देर तक सोने से और देर रात तक जागने से बचना चाहिए.
- हल्के नीले रंग के वस्त्रों का प्रयोग करें.
- संध्याकाळ में शनि के मन्त्रों का जप अवश्य करें

पाना चाहते है मुसीबतों से छुटकारा तो, ऐसे करें चन्द्रमा और मंगल देव को प्रसन्न

शनि देव को प्रसन्न करने के लिए करें इस मन्त्र का जाप

जानिये क्या है मौत के करीब आने के संकेत, शास्त्रों में भी है इसका वर्णन

26 फरवरी से शुरू होने जा रहे भस्म बुधवार के बारे में ये बाते नहीं जानते होंगे आप ...........26 फरवरी से शुरू होने जा रहे भस्म बुधवार के बारे में ये बाते नहीं जानते होंगे आप ...........

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ईसाइयो में 40 दिन के उपवास के रूप मे रखे जाने वाले दिन की शुरुआत इस वर्ष 26 फरवरी से शुरू होने जा रहा है इसे ही ऐश वेडनेसडे या भस्म बुधवार के नाम से जाना जाता है ये 26 फरवरी से शुरू होकर 10 अप्रैल तक चलेंगे , वैसे तो इन दिनों की काउंटिंग 40 से ज्यादा होती है लेकिन इन्हे चालीस दिन इसलिए कहा जाता है क्योकि इसमें रविवार को नहीं गिना जाता है क्योकि वो प्रभु येशु के जी उठाने का दिन माना जाता है इसलिए ये पवित्र दिन है और इसलिए ईसाइयो में इस दिन उपवास या शुक या शादी ब्याह नहीं की जाती हैऔर यही कारण है की ये चालीस दिन गिने जाते है। इन उपवास के दिनों में चर्चेस में सुबह शाम उपवास रखे जाते है और बाइबिल के वचन सुनाए जाते है 

इन दिनों में मन को शांत को अध्यात्म से जुड़ने और ईश्वरीय अनुग्रह को पाने के लिए उपवास रखे जाते है लेकिन 40 दिन ही इसलिए क्योकि बाइबिल में 40 दिन में कई आध्यात्मिक और अद्भुत कार्यो की चर्चा मिल सकती है इसलिए इसे ध्यान रखते हुए इसे भी चालीस दिन रखा गया है। अपने पापो से माफ़ी मांगने और आत्मिक शुद्धि के लिए ये दिनों का बहुत महत्व है इन दिनों ईसाई समुदाय के लोग एक टाइम रात में भोजन ग्रहण करते है और दिन भर उपवास रखते है।

इसके अलावा इस समयावधि में अपनी बुरी आदतों को पीछे छोड़कर, नये बदलाव के साथ, अपनी गलतियों के लिए प्रभु यीशु और अन्य बंधुओं से क्षमा मांगते हैं। यीशु के बताये मार्ग को अपनाते हैं। यीशु ने कहा है कि अपने पड़ोसियों को अपने समान प्यार करो। समाज मानता है कि मानवीय प्रेम हमें ईश्वरीय प्रेम से जोड़कर परमात्मा के दर्शन कराता है। इन दिनों वे किसी शादी ब्याह नहीं करते और न ही कोई शुभ काम करते है ये चालीस दिन ईस्टर के एक दिन पहले पड़ने वाले दिन साइलेंट सैटरडे पर समाप्त होता है।

कुछ इस तरह होगा आज आपका दिन, इन राशि वालों की चमकेगी किस्मत

अगर शरीर के इन अंगों में हो खुजली तो मिलते हैं भविष्य से जुड़े यह संकेत

आज संविधान पीठ में महिलाओं से भेदभाव पर होगी बहस, धर्म बना कारण

 

Vijaya Ekadashi 2020: जानिये क्या है शुभ मुहूर्त, यह है ख़ासVijaya Ekadashi 2020: जानिये क्या है शुभ मुहूर्त, यह है ख़ास

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(Vijaya Ekadashi 2020) फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को विजया एकादशी के नाम से जाना जाता है.वहीं ऐसा माना जाता है कि भगवान श्री राम ने भी लंका विजय के लिए इस व्रत विधान को किया था. इसके साथ ही व्यक्ति के जीवन की सभी मुश्किलों जैसे शत्रु बाधा व्यापार और नौकरी की परेशानी तथा सेहत की दिक्कत इसी व्रत से खत्म हो सकती है. इसके अलावा विजया एकादशी पर पीले फूल और केसर के द्वारा भगवान विष्णु (Vijaya Ekadashi date and time) की पूजा अर्चना की जाती है. वहीं व्यक्ति को सुबह स्नान करके भगवान विष्णु की पीले फूलों से पूजा करनी चाहिए और उन्हें पीले फल और वस्त्र अर्पण करने चाहिए. इसके साथ ही इस दिन केसर का तिलक भगवान विष्णु (Lord Vishnu) को लगाएं ऐसा करने से व्यक्ति को पुण्य की प्राप्ति होती है और मन की इच्छा पूरी होती है.

विजया एकादशी पर कौन सी सावधानियां बरतें

1. विजया एकादशी के दिन सूर्योदय से पहले उठे स्नान करके साफ हल्के रंग के कपड़े पहने

2. घर में प्याज लहसुन और तामसिक भोजन का बिल्कुल भी प्रयोग ना करें

3. सुबह और शाम एकादशी की पूजा (Vijaya Ekadashi puja) पाठ में साफ-सुथरे कपड़े पहन कर ही व्रत कथा सुने

4. विजया एकादशी की पूजा में हर कार्य में विजय के लिए शांति पूर्वक माहौल बनाए रखें

5. विजया एकादशी पर एक आसन पर बैठकर ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का 108  बाहर जाप  जरूर करें


क्या है पूजा का शुभ मुहूर्त

विजया एकादशी की पूजा का शुभ मुहूर्त (Vijaya Ekadashi shubh muhurt) सुर्योदय के बाद दोपहर 3 बजकर 01 मिनट तक है.

विजया एकादशी पर कैसे करें पूजा?

- एक दिन पहले यानी दशमी तिथि को एक कलश शुद्ध जल से भरें और  घर के पूजा स्थल में रखें
- कलश पर आम के पत्ते रखकर उसपर एक नारियल स्थापित करें तथा श्री विष्णु जी की फोटो या चित्र को पीले वस्त्र पर स्थापित करें
- फिर एकादशी के दिन सुबह उठकर स्नान करें  और पीले चन्दन/पीले फूल/पीली मिठाई/लौंग  सुपारी इत्यादि से पूजन करें
- धूप दीप जलाएं और एकादशी की कथा सुने और मन ही मन विष्णु जी से अपनी समस्या कहें
- कथा सम्पूर्ण होने पर श्रीविष्णु जी की आरती करें
- फिर द्वादशी के दिन कलश लेकर किसी विष्णु मंदिर में रख आएं
- ब्राह्मणों और जरूरतमंद  लोगों को सामर्थ्य अनुसार  दान भी दें उसके बाद स्वयं खाना खाएं

विजया एकादशी पर करे महाउपाय

- सुबह के समय जल्दी उठें और स्नान के जल में केसर डालकर स्नान करें
- सूर्य नारायण को जल में केसर के डाल कर अर्घ्य दे
- भगवान विष्णु या राम दरबार के चित्र को अपने सामने स्थापित करें
- ग्यारह की संख्या में केले/लड्डू/फल/बादाम/मुन्नका आदि पूजा में रखें और दीया जलाएं
- ॐ क्लीं कृष्णाय नमः मंत्र का तीन माला जाप करें
- जाप के बाद यह फल सामग्री जरूरतमंद लोगों में बाट दें हर कार्य मे सफलता का योग बनेगा

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Maha Shivratri 2020: जानिये महाशिवरात्रि का शुभमुहूर्त, पूजा की सही विधिMaha Shivratri 2020: जानिये महाशिवरात्रि का शुभमुहूर्त, पूजा की सही विधि

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हिंदू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है महाशिवरात्रि. इसके अलावा सोमवार का दिन भगवान शिव की आराधना का दिन माना जाता है. इसके अलावा इसी तरह मासिक शिवरात्रि भी मनाई जाती है. वहीं शिवरात्रि का मुख्य पर्व साल में दो बार व्यापक रुप से मनाया जाता है. एक फाल्गुन के महीने में तो दूसरा श्रावण मास में. इसके अलावा फाल्गुन के महीने की शिवरात्रि को महाशिवरात्रि कहा जाता है. महाशिवरात्रि के दिन लोग व्रत रखते हैं और पूरे विधि विधान से शंकर भगवान की पूजा करते हैं. इसके अलावा इस साल महाशिवरात्रि  का पर्व  21 फरवरी को शुक्रवार के दिन मनाया जाएगा.

महाशिवरात्रि का महत्व

हिंदू पंचांग के मुताबिक, फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है. ऐसी मान्यता है कि इस दिन शिव और पार्वती का विवाह संपन्न हुआ था. मान्यता है कि महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव पर एक लोटा जल चढ़ाने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं.

महाशिवरात्रि का शुभ मुहूर्त

21 तारीख को शाम को 5 बजकर 20 मिनट से 22 फरवरी, शनिवार को शाम सात बजकर 2 मिनट तक रहेगा.

शिवरात्रि की पूजा विधि

- शिव रात्रि को भगवान शंकर को पंचामृत से स्नान करा कराएं.
- केसर के 8 लोटे जल चढ़ाएं.
- पूरी रात्रि का दीपक जलाएं.
- चंदन का तिलक लगाएं.
- तीन बेलपत्र, भांग धतूर, तुलसी, जायफल, कमल गट्टे, फल, मिष्ठान, मीठा पान, इत्र व दक्षिणा चढ़ाएं. सबसे बाद में केसर युक्त खीर का भोग लगा कर प्रसाद बांटें.
 - पूजा में सभी उपचार चढ़ाते हुए ॐ नमो भगवते रूद्राय, ॐ नमः शिवाय रूद्राय् शम्भवाय् भवानीपतये नमो नमः मंत्र का जाप करें.

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गुरूवार का दिन हिन्दू भगवान विष्णु जी को है समर्पितगुरूवार का दिन हिन्दू भगवान विष्णु जी को है समर्पित

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हमारे हिंदू धर्म में, सप्ताह में प्रत्येक दिन हिंदू धर्म में एक विशेष देवता को समर्पित है। इसके अलावा बृहस्पतिवार, जो बृहस्पतिवार या वृहस्पतिवार है, विष्णु और बृहस्पति देवों के गुरु को समर्पित है। इसके साथ ही गुरुवार को लोकप्रिय रूप से गुरुबर या गुरुवर के रूप में भी जाना जाता है। वहीं पीला दिन का रंग है। एक दिन उपवास रखा जाता है और भोजन केवल एक बार खाया जाता है। इसके साथ ही कुछ क्षेत्रों में, लोग इसे गुरुवार को हनुमान मंदिर जाने के लिए एक बिंदु बनाते हैं।

इसके अलावा व्रत रखने वाले भक्त पीले रंग की पोशाक पहनते हैं और विष्णु और बृहस्पति को पीले रंग के फल और फूल चढ़ाते हैं। वहीं भोजन केवल एक बार खाया जाता है और इसमें चना दाल (बंगाल ग्राम) और घी शामिल होता है। मूल रूप से, पीले रंग का भोजन दिन में खाया जाता है।इसके साथ ही  कुछ क्षेत्रों में, केले या केला की पूजा की जाती है और पानी पिलाया जाता है।

आपकी जानकारी के लिए बता दें की बृहस्पतिवार को, उपवास या उपवास के पालन के कारण के साथ कई कहानियां जुड़ी हुई हैं। कई कहानियाँ स्थानीय लोककथाओं का हिस्सा हैं और कहानियाँ एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में भिन्न होती हैं। लगभग सभी कहानियों से पता चलता है कि जो लोग गुरुवार को पूजा और व्रत करते हैं, उन्हें धन और सुखी जीवन प्राप्त होगा।इसके साथ ही  कुछ कहानियों में, भगवान विष्णु गुरुवार को भक्तों का परीक्षण करने के लिए एक साधु की आड़ में दिखाई देते हैं।

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