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मूषक को ही क्यों चुना गणेश ने अपना वाहनमूषक को ही क्यों चुना गणेश ने अपना वाहन

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गणेश जी की बुद्धि का हर कोई कायल है. तर्क-वितर्क में हर कोई हार जाता था. एक-एक बात या समस्या की तह में जाना, उसकी मीमांसा करना और उसके निष्कर्ष तक पहुंचना उनका शौक है. चूहा भी तर्क-वितर्क में पीछे नहीं रहता. चूहे का काम किसी भी चीज को कुतर डालना है, जो भी वस्तु चूहे को नजर आती है वह उसकी चीरफाड़ कर उसके अंग प्रत्यंग का विश्लेषण सा कर देता है. शायद गणेश जी ने कदाचित चूहे के इन्हीं गुणों को देखते हुए उसे अपना वाहन चुना होगा. मोदक का भोग शास्त्रों के मतानुसार भगवान गणेश को प्रसन्न करने के लिए सबसे सरल व उत्तम उपाय है मोदक का भोग. गणेश जी को सबसे प्रिय मोदक है. गणेश जी का मोदक प्रिय होना भी उनकी बुद्धिमानी का परिचय है. मोदक का अर्थ- मोद यानी आनंद व क का अर्थ है छोटा- सा भाग. अतः मोदक यानी आनंद का छोटा-सा भाग. मोदक का आकार नारियल समान होती है. हाथ में रखे मोदक का अर्थ है कि उस हाथ में आनंद प्रदान करने की शक्ति है. यही नहीं मोदक ज्ञान का प्रतीक भी है. जैसे मोदक को थोड़ा-थोड़ा और धीरे-धीरे खाने पर उसके स्वाद और मिठास का पता चलता है और अंत में उसे खाने के बाद हमे आनंद प्राप्त होता है, उसी तरह ज्ञानमोदक को लेकर आरंभ में लगता है कि ज्ञान थोड़ा सा ही है परंतु अभ्यास आरंभ करने पर समझ आता है कि ज्ञान अथाह है. क्या है गणेश जी की सूंड को लेकर ऐसी मान्यता है कि सूंड को देखकर दुष्ट शक्तियां डरकर मार्ग से अलग हो जाती हैं. इस सूंड के जरिए गणेश जी ब्रह्मा जी पर कभी जल फेंकते हैं तो कभी फूल बरसाते हैं. गणेश जी की सूंड के दायीं ओर या बायीं ओर होने का भी अपना महत्व है. कहा जाता है कि सुख, समृद्धि व ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए उनकी दायीं ओर मुड़ी सूंड की पूजा करनी चाहिए और यदि किसी शत्रु पर विजय प्राप्त करने जाना हो तो बायीं ओर मुड़ी सूंड की पूजा करनी चाहिए. क्यों कहा जाता है लंबोदर? लड्डू प्रेमी भगवान गणेश जी का पेट बहुत बड़ा है इसलिए उन्हें लंबोदर भी कहा जाता है. लेकिन लोगों के मन में सवाल उठता है कि आखिर उनका नाम लंबोदर कैसे पड़ा. ब्रह्मपुराण में वर्णन मिलता है कि गणेश जी माता पार्वती का दूध दिन भर पीते रहते थे. उन्हें डर था कि कहीं भैया कार्तिकेय आकर दूध न पी लें. उनकी इस प्रवृति को देखकर पिता शंकर ने एक दिन विनोद में कह दिया कि तुम दूध बहुत पीते हो कहीं तुम लंबोदर न बन जाओ. बस इसी दिन से गणेश जी का नाम लंबोदर पड़ गया. उनके लंबोदर होने के पीछे एक कारण यह भी माना जाता है कि वे हर अच्छी-बुरी बात को पचा जाते हैं.

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