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भगवान ने खुद यहां कई रूपों में अवतरित होकर दुनिया का किया है उद्धारभगवान ने खुद यहां कई रूपों में अवतरित होकर दुनिया का किया है उद्धार

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जब-जब धरती पर अधर्म बढ़ा है, भगवान ने खुद यहां कई रूपों में अवतरित होकर दुनिया का उद्धार किया है। संसार के कल्याण के लिए उन्होंने तमाम लीलाएं रचीं और लोगों को जीवन का गूढ़ पाठ पढ़ाया। जन्म लेने का मकसद पूरा होने के बाद हमारी ही तरह उन्होंने भी दुनिया को अलविदा कहा था। 

मनुष्य रूप में जन्म लेने के कारण ईश्वर को भी धरती से वापस जाना पड़ा।हम इसीलिए उन्हें पूजते हैं, क्योंकि उनके जीवन की हर घटना हमारे पूरे अस्तित्व को बदल सकती है। हम उनकी लीलाओं से बहुत कुछ सीख सकते हैं। आज हम आपको बताएंगे कि अवतार रूप में संसार में आने वाले देव पुरुष किस तरह यहां से वापस गए थे? 

सरयू नदी में समा गए श्रीराम
पद्म पुराण के अनुसार, श्रीराम से मिलने एक बार एक संत आए और उन्होंने उनसे एकांत में बात करनी चाही। श्रीराम ने आदेश दिया कि कोई भी उनकी बातचीत के बीच न आए और इसकी ज़िम्मेदारी लक्ष्मण को दी। साथ ही संत के कहने पर प्रतिज्ञा की कि अगर किसी ने उनकी बात सुनी और बीच में आया तो उसे मृत्युदंड मिलेगा। दरअसल, संत के रूप में वो महाकाल आए थे, जिन्होंने राम से कहा कि हे प्रभु! धरती पर आपका रहने का समय समाप्त हो चुका है, इसलिए अब आप अपने श्रीधाम में पधारें। 

इसी बीच द्वार पर महाक्रोधी दुर्वासा ऋषि आए और श्रीराम से मिलने की जिद करने लगे। उन्होंने कहा कि अगर अभी लक्ष्मण ने उनसे मिलने न दिया तो वे राम को शाप दे देंगे। लक्ष्मण भाई के आदेश से बंधे थे, फिर भी उन्होंने भाई को शाप से बचाने के लिए खुद का जीवन दाव पर लगाने की ठानी। 

वे श्रीराम के पास चले गए और दुर्वासा ऋषि के आने की जानकारी दी। श्रीराम को अपनी प्रतिज्ञा याद करके बहुत दुःख हुआ। वे अपने परम प्रिय भाई को मौत की सजा भला कैसे दे सकते थे।

लक्ष्मण का जाना
पहले के समय में देश से निकाला जाना भी मृत्युदंड के बराबर ही माना जाता था। इसलिए श्रीराम ने लक्ष्मण को देश छोड़ कर चले जाने का आदेश दिया। पर बिना श्रीराम के लक्ष्मण नहीं रह सकते थे, इसलिए उन्होंने जाकर सरयू नदी में समाधि ले ली और फिर शेषनाग के रूप में अपने लोक चले गए। उनके बिना श्रीराम का मन नहीं लगता था, फिर एक दिन उन्होंने भी इस लोक से जाने का निश्चय किया और सरयू नदी के आंतरिक भू-भाग तक जाकर उसमें लीन हो गए।


श्रीकृष्ण को बहेलिए ने मारा तीर
महाभारत की समाप्ति के बाद कृष्ण को इसका ज़िम्मेदार मानते हुए कौरवों की मां गांधारी ने उन्हें शाप दिया था। उन्होंने श्रीकृष्ण से कहा कि 'आप जानते थे इस युद्ध का परिणाम कितना भयावह होगा और इतने लोगों की मौत होगी, फिर भी आपने इसे नहीं रोका। मैंने आपसे कितनी बार इस युद्ध को रोकने का आग्रह किया, लेकिन आपने कुछ नहीं किया। पुत्रों को खोने का दर्द अपनी मां देवकी से पूछो कि पुत्रों को खोने का गम क्या होता है?' फिर उन्होंने गुस्से से कहा कि 'अगर मैंने पूरे मन से भगवान विष्णु की पूजा की हो और अपने पति की पूरे मन से सेवा की हो, तो जैसे मेरा कुल समाप्त हुआ, तुम्हारा कुल भी तुम्हारी आंखों के सामने समाप्त हो जाएगा और तुम देखते रह जाओगे। द्वारका तुम्हारे सामने ही समुद्र में डूब जाएगी और यदुवंश का नाश हो जाएगा।'

इतना कहने के बाद जब क्रोध शांत हुआ तो गांधारी भगवान श्रीकृष्ण के क़दमों में गिर पड़ीं। भगवान ने उन्हें उठाया और कहा कि 'माता मुझे आपसे इसी आशीर्वाद की प्रतीक्षा थी, मैं आपके शाप को ग्रहण करता हूं।' इसके बाद गांधारी और यदुवंश के बच्चों को ऋषियों से मिले शाप के कारण द्वारका के लोग अनुशासनहीन हो गए और उनमें बुरी आदतें आ गईं। एक बार उत्सव के लिए यदुवंशी सागर किनारे एकत्र थे। इसी दौरान किसी बात पर नशे में डूबे इन लोगों में लड़ाई शुरू हो गई। इसके बाद वहां उगी एरका नामक घास से लोग एक-दूसरे पर प्रहार करने लगे। वो घास शाप के प्रभाव के कारण मूसल बन जाती थी और इन लोगों की मृत्यु हो जाती थी। इस तरह नष्ट हुए वंश के बाद श्रीकृष्ण एक बार जंगल में एक पेड़ के नीचे विश्राम कर रहे थे, तभी एक तीर आकर उनके तलवों में लगा। बहेलिए ने शिकार समझकर तीर मारा था। उसने बहुत माफ़ी मांगी, लेकिन श्रीकृष्ण को तो इसी बहाने अपने धाम जाना था और वो चले गए।

देवताओं के अंश पांडव
महाभारत युद्ध के उपरांत अपनी प्रजा की सेवा करने के कुछ समय बाद जब श्रीकृष्ण भी इस लोक से जा चुके थे, तो पांडव भी द्रौपदी समेत स्वर्ग जाने के लिए निकले। ये सभी पांडव किसी न किसी देवता का रूप या अंश थे। अनेक तीर्थों, नदियों व समुद्रों की यात्रा करते-करते पांडव आगे बढऩे लगे। यात्रा करते-करते पांडव हिमालय तक पहुंच गए, हिमालय लांघ कर पांडव आगे बढ़े तो उन्होंने सुमेरु पर्वत के दर्शन किए। 

वहीं से पहले द्रौपदी फिर सारे पांडव एक-एक करके मरने लगे, सिर्फ युधिष्ठिर और उनके साथ ही चल रहा कुत्ता जीवित रहा। इसके बाद उन्हें स्वर्ग ले जाने के लिए स्वयं देवराज इंद्र अपना रथ लेकर आए। तब युधिष्ठिर ने इंद्र से बाकी पांडवों के मरने का कारण पूछा। इंद्र ने बताया कि पांचाली अर्जुन से ज्यादा मोह के चलते और भीम को बल का, अर्जुन को युद्ध कौशल का, नकुल को रूप और सहदेव को बुद्धि पर घमंड था। इसके कारण वे सशरीर स्वर्ग नहीं जा पाए।

इन तथ्यों को जानने के बाद एक बात तो साफ़ है कि ये दुनिया नश्वर है और यहां जन्मे हर जीव पर एक ही नियम लागू होता है। जो आया है, उसे जाना ही होगा, चाहे इन्सान हो या भगवान।


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