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मानसिकता से ही बनती है परिवार में दूरियाँमानसिकता से ही बनती है परिवार में दूरियाँ

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आज हमारा यह समाज बदलता सा जा रहा है. लोग आज समाज से तो क्या अपने परिवार से दूरियाँ बना रहे है .आज इस दौर में हमारी महत्वाकांक्षाएं , जरूरतें इतनी बढ़ती जा रही है. की हम उनकी पूर्ति के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार हो जाते हैं. आज जितना छोटा परिवार होता जा रहा है. लोगो की समस्याएं उतनी बढ़ती जा रही है. लोगो की मानसिकता बदलती जा रही है.

आज व्यक्ति बेटी को जन्म देने से डरने सा लगा है, ऐसा क्यों? क्या दहेज़ की वजह से? पर आपकी यह सोच बिलकुल गलत है. आपकी मानसिकता अच्छी नहीं है .व्यक्ति यह क्यों भूल बैठा है. की आज उस बेटी की वजह से ही परिवार बन रहे है, मानव का समाज आगे बढ़ रहा है .

पहले औसतन एक परिवार में स्त्री-पुरुष और बच्चों की संख्या मिलाकर कम से कम 20 से 30 या उससे भी ऊपर सदस्य हुआ करते थे, किंतु आज यह संख्या ज्यों ही सात-आठ के ऊपर होती है तो परिवार 'बड़ा" कहलाने लगता है. आज तो हमारी मानसिकता इतनी ज्यादा बदल चुकी है. कि जिस परिवार में लोग बेटी की शादी करना चाहते हैं, उसमें कुल सदस्यों की संख्या चार-पांच से अधिक नहीं चाहते.

आज तो लोग परिवार में केवल ,मैं, मेरी पत्नी और मेरे एक-दो बच्चे, एक तरह से देखें तो आज सिमटते परिवार से माता-पिता का ही नाम अलग हो गया है, फिर भाई-बहनों और अन्य की तो बात ही अलग है. आज मानव की मानसिकता इतनी गंदी हो चुकी है. की जिसने उसे जन्म दिया , पालन किया और जीवन में आगे बढ़ने की दिशा दिखाई. उसे ही भुला दिया उनके लिए आपकी सोच इतनी बदल गई की आपने अपने परिवार से उन्हें अलग ही समझ लिया.

आप यह नहीं जानते की इस जगत में माँ बाप से बढ़कर अन्य कोई नहीं है , आपको चाहिए की आप अपने जीवन में एकता और सच्ची मानसिकता के साथ जीना सीखें.


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