
भगवान श्रीकृष्ण ने एक बार युधिष्ठिर को बताया था कि आषाढ़ कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी का व्रत करने से सारे पापों को नाश होता है और हम सद्कर्मों की ओर बढ़ते हैं।
इस एकादशी का व्रत करने से सांसारिकता में डूबे मानव पर अध्यात्म की बौछारें होती है।
आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष को पड़ने वाली एकादशी को योगिनी एकादशी कहा जाता है। ये आमतौर पर जून या फिर जुलाई माह में आती है। हिंदू मान्यता के अनुसार योगिनी एकादशी का व्रत कई तरह के कष्टों से मुक्ति के लिए किया जाता है।
ऐसा माना जाता है कि इस व्रत को करने से अच्छे स्वास्थ्य और कल्याण का वरदान मिलता है। इसके साथ ही योगिनी एकादशी करने से मनुष्य पाप और बुरे कर्मों से मुक्त रहता है, जो अंतत: मोक्ष की राह आसान करता है। योगिनी एकादशी को शुद्ध एकादशी भी कहा जाता है।
युधिष्ठिर ने एक बार कृष्ण से पूछा था कि जेठ माह के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली निर्जला एकादशी के महत्व के बारे में तो सुना है, लेकिन आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली शुद्ध एकादशी के बारे में बताएं। इस पर कृष्ण ने बताया कि आषाढ़ कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी का व्रत करने से हमारे सारे पापों को नाश होता है और हम सद्कर्मों की ओर बढ़ते हैं।
इस एकादशी का व्रत करने से सांसारिकता में डूबे मानव पर अध्यात्म की बौछारें होती है। कृष्ण कहते हैं कि तीनों लोकों में योगिनी एकादशी का व्रत सबसे पवित्र व्रत माना जाता है। ऐसा कैसे होता है, इसके विस्तार में जाने के लिए पहले योगिनी एकादशी की कथा जानना जरूरी है।