
बचपन से ही मैंने यक्ष, गण और देवताओं के बारे में हर तरह की कहानियां सुनी हैं। मुझे उन्हें सुनने में भरपूर आनंद तो आता था, लेकिन उन पर भरोसा नहीं होता था। लेकिन जब मैं पहली बार मानसरोवर गया, तो वहां मैंने तमाम ऐसी चीजों को होते देखा, जिन्हें मैं असंभव मानता था। धीरे-धीरे अब मैं सोचने लगा हूं, कि कहीं वे कहानियां भी सच्ची तो नहीं हैं, जिन्हें मैं बचपन से सुनता आ रहा हूं। हालांकि ये सब सोचते वक्त मुझे अपनी बेवकूफी का अहसास होने लगता है, क्योंकि दुनिया भर में मेरी पहचान एक स्पष्टवादी गुरु की है। मेरे तर्क ऐसे होते हैं, जिनमें कोई नुक्स नहीं निकाल पाता। ऐसे में अगर अब मैं उस सबके बारे में बात करूं, जो मैं देख रहा हूं – खासकर मानसरोवर में, तो इसका मतलब है कि मैं अपनी प्रतिष्ठा दांव पर लगा रहा हूं।
भारत के धर्म ग्रंथों में बहुत से प्रसंग हैं, जिनमें दूसरे लोक के प्राणियों द्वारा यहां घूमने, यहां के आम लोगों से बातचीत करने और तमाम दूसरी बातों की चर्चा है। मैंने हमेशा उन सभी बातों और प्रसंगों को बढ़ा चढ़ाकर की गई बातें कहकर अस्वीकार किया है। लेकिन जब आप दुनिया की संस्कृतियों पर गौर करते हैं, तो इसी तरह की तमाम कहानियां देखने और सुनने को मिलती हैं। अगर वास्तव में ऐसा कुछ न हुआ होता, तो हर जगह लगभग एक जैसी कहानियां न बनी होतीं। बाइबल में खासकर यूनानी संस्कृति में भी ऐसी ही कहानियों का जिक्र मिलता है। यहां तक कि नाम भी एक जैसे लगते है। ऋग्वैदिक काल से ही हम तारों पर सवारी करने वालों, या तारों से पृथ्वी पर आने वाले लोगों के बारे में सुनते आए हैं। ऐसे लोग जो आकाश में रहते हैं, और आम लोगों के जीवन में अपना योगदान देते हैं। इन प्रसंगों में बताया जाता है कि वे लोग इस धरती पर कैसे आए। ठीक ऐसी ही बातें और कहानियां हमें सुमेरियन संस्कृति, मेसोपोटामिया की संस्कृति, अरब की कुछ खास संस्कृतियों, अफ्रीका के उत्तरी भागों में और दक्षिण अमेरिका में भी सुनने व पढ़ने को मिलती हैं। हजारों सालों तक इन महाद्वीपों के बीच कोई संपर्क ही नहीं रहा है। इसके बावजूद इन सभी जगहों पर एक से शब्दों में रची एकसी कहानियां सुनने को मिलती हैं।
मानसरोवर टेथिस सागर का अवशेष है। जो कभी एक महासागर हुआ करता था, वह आज 14900 फुट ऊंचे स्थान पर स्थित है। इन हजारों सालों के दौरान इसका पानी मीठा हो गया है, लेकिन जो कुछ चीजें यहां पाई जाती हैं, उनसे जाहिर है कि अब भी इसमें महासागर वाले गुण हैं। सबसे बड़ी बात यह है, कि यहां जीवन के एक अलग रूप से जुड़ी तमाम गतिविधियां हैं। जैसा कि मैंने बार-बार कहा है, मैं आध्यात्मिक रूप से शिक्षित नहीं हूँ, न ही मुझे किसी धर्मग्रंथ या उपदेश की कोई जानकारी है। मैं जो भी जानता हूं, वह बस यह जीवन ही है। इसकी शुरुआत से इसके अंत तक मैं इसे अच्छी तरह जनता हूं। इस जीवन को जानकर इसी के आधार पर आप जीवन के अन्य रूपों को जान सकते हैं। तो हमने जो कुछ भी मानसरोवर में देखा, वह जीवन है, लेकिन यह वैसा जीवन नहीं है, जिसके बारे में हम जानते हैं। जीवन के जो मूल मानदंड यहां हैं, वे या तो व्यक्तिगत हैं, या फिर जब वे एक साथ मिलते हैं तो वे अपनी पहचान खो देते हैं।