Quantcast
Channel: Newstracklive.com | suvichar
Viewing all articles
Browse latest Browse all 13839

गुरू के रहते हुए अंहकार नहीं उत्पन्न हो सकतागुरू के रहते हुए अंहकार नहीं उत्पन्न हो सकता

$
0
0
जब मैं था तब गुरू नहीं, अब गुरू हैं मैं नाहिं। प्रेम गली अति सांकरी, तामें दो न समांहि।। अर्थात-जब अंहकार रूपी मैं मेरे अन्दर समाया हुआ था तब मुझे गुरू नहीं मिले थे, अब गुरू मिल गये और उनका प्रेम रस प्राप्त होते ही मेरा अंहकार नष्ट हो गया। प्रेम की गली इतनी संकरी है कि इसमें एक साथ दो नहीं समा सकते अर्थात् गुरू के रहते हुए अंहकार नहीं उत्पन्न हो सकता। साधू भूखा भाव का, धन का भूखा नाहिं। धन का भूखा जो फिरै, सो तो साधू नाहिं।। अर्थात-साधु संत प्रेम रूपी भाव के भूखे होते हैं, उन्हें धन की अभिलाषा नहीं होती किन्तु जो धन के भूखे होते हैं। जिसके मन में धन प्राप्त करने की इच्छा होती है वे वास्तव में साधु है ही नहीं। माला फेरत युग गया, मिटा ना मन का फेर। कर का मनका डारि दे, मन का मन का फेर।। अर्थात-हाथ में माला लेकर फेरते हुए युग व्यतीत हो गया फिर भी मन की चंचलता और सांसारिक विषय रूपी मोह भंग नहीं हुआ। कबीर दास जी सांसारिक प्राणियों को चेतावनी देते हुए कहते हैं- हे अज्ञानियों हाथ में जो माला लेकर फिरा रहे हो, उसे फेंक कर सर्वप्रथम अपने हदय की माला को शुद्ध करो और एकाग्र चित्त होकर प्रभु का ध्यान करो। सब धरती कागद करूं, लिखनी सब बनराय। सात समुद्र का मसि करूं, गुरू गुण लिखा न जाय।। अर्थात-सम्पूर्ण पृथ्वी को कागज मान लें, जंगलों की लकडि़यों की कलम बना ली जाए तथा सात महा समुद्रों के जल की स्याही बना ली जाये फिर भी गुरू के गुणों का वर्णन नहीं किया जा सकता क्योंकि गुरू का ज्ञान असीमित है उनकी महिमा अपरम्पार है।

Viewing all articles
Browse latest Browse all 13839

Trending Articles



<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>