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सत संगति और सच्चा मन - अब बदले हमसत संगति और सच्चा मन - अब बदले हम

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इस जगत में मानव जीवन में भावना और विचारों की श्रेष्टता का होना बहुत ही जरुरी होता है. जो उसे इस संसार सागर में एक अच्छी पहचान के रूप में प्रस्तुत करता है. श्रष्टि की इस रचना में मानव श्रेष्ठ है, वह इसलिए क्योंकि केवल मानव के भीतर चिंतन मनन और भावनाओं को व्यक्त करने की क्षमता है. और उचित-अनुचित का निर्णय करने की शक्ति प्राप्त है । अन्य प्राणी किसी काम को करने से पूर्व उसके परिणाम के बारे में सोच-विचार करने में असमर्थ हैं। मानव के अंदर भावनाओं का समावेश अच्छे और बुरे की पहचान ,उचित और अनुचित , धर्म और अधर्म की पहचान करना दिए गए ज्ञान और सत्संग से संभव है. नवजात शिशु को कुछ नहीं पता होता वह अबोध होता है.अपना- पराया कुछ नहीं जानता उसे इस संसार सागर का ज्ञान उसके माता पिता देते है.वह अपने जीवन की दिशा मिले ज्ञान और सत्संग से प्राप्त करता है . उसे जैसी शिक्षा मिलेगी वह अपने भविष्य में वैसे ही कार्य करेगा माँ बाप तो  बच्चों को हमेशा अच्छी ही शिक्षा और ज्ञान देते है. पर कई बार ऐसा होता है. की उनके बच्चे गलत राह अपना लेते है. बुरे कार्य करने लगते है. इसका कारण कहीं न कहीं से उन्हें गलत सीख मिल रही है. जो आप समझ नहीं पा रहे है. जो आगे चलकर एक बड़ा और बुरा कदम उठा लेते है. यह सब संगति का ही असर है.संगति में वो शक्ति है.जो अच्छे को बुरा और बुरे को अच्छा बना देती है. कहने का आशय यह है की यदि आपकी संगति अच्छी है. तो आप जीवन में एक अच्छी दिशा हासिल करेंगे. और यदि बुरी संगति है. तो गलत कार्यों को अपनायेगें .  संगति के प्रभाव से तो पशु भी जीने का ढंग सीख लेते है फिर तो आप इन्शान है .एक पक्षी भी जिसे हम ईश्वर का नाम सुनाते है. कुछ समय बाद वह भी भगवान के नाम का गुणगान करने लगता है. संगति का  ही बड़ा प्रभाव पड़ता है ,संगति से ही आपके मन , भावनाओं , विचारों में परिवर्तन आता है .अच्छे लोगों की संगति करने से अच्छा प्रभाव पड़ता है , अच्छे लोग वे होते है जिनके विचार , भावनाएं , मन ,आत्मा में पवित्रता के भाव हों. संगति का कुछ ऐसा होता है असर - स्वाति की एक बूंद केले में जब पड़ती है तो वह कपूर बन जाती है, सीप में पड़कर मोती और सर्प के मुख में पड़कर विष बन जाती है। यानी जैसी संगति होगी, वैसा ही फल मिलेगा। श्रेष्ठजनों के साथ मित्रता कर उनके आचरण से दुर्जन भी सज्जन बन सकता है।

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