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जानें - क्या है सत्य और सनातनजानें - क्या है सत्य और सनातन

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सत्य वह है जो हमेशा एकरूप में स्थित रहता है। उसमें अटलता होती है. जो वास्तविकता को लेकर चले वही सत्य है .सत्य किसी भी काल, किसी भी युग और किसी भी परिस्थिति और समय के अनुरूप परिवर्तित नहीं होता है .स्पष्ट रूप से कहें तो सत्य , अपरिवर्तनशील है, 

अपरिवर्तनशील तत्व नित्य, शुद्ध परमात्मा है, और यह परमात्मा हमारे इस घट में आत्मा के रूप में विद्यमान रहता है। समस्त जीवों के अंदर रहते हुए भी कोई उसे जान नहीं पाता.इस संसार सागर में ईश्वर ही सत्य है . कई बार यह होता है. की हम परमात्मा को यहां - वहां खोजते रहते है , मंदिर ,मस्जिद  , गुरुद्वारे व्यक्ति यह नहीं जानता की उसकी इसी आत्मा में परमात्मा  है . 

किसी ने इन पंक्त्तियों के माध्यम से आत्मा में परमात्मा का होना बताया है 

- कस्तूरी कुण्डल बसी , मृग ढूंढे वन माय 

ऐसे घट-घट राम है , दुनियाँ जानें नाय,

कहने का आशय की जिस तरह कस्तूरी मृग की नाभी में होते हुए भी वह उसकी सुगंध को लेकर यहां -वहां भटकता रहता है .उसी तरह इस मानव की आत्मा में परमात्मा होने के बाद भी वह यहां-वहां उसे खोजता रहता है . देहधारियों में मानव ही मात्र साधन धाम कहलाता है। मनुष्य को ईश्वर ने अन्य प्राणियों से अतिरिक्त एक अन्य गुण भी प्रदान किया है, वह है विवेक।

परमात्मा ने मनुष्य को प्रधानता प्रदान करते हुए उसे विवेकशील प्राणी बनाया है। और उसका यह विवेक तब झलकता है .जब वह सत्य को लेकर जीवन यापन करे ,अपनी भावना ,विचारों , मन , चेतना आदि का शुद्धिकरण ही सनातन धर्म है .

जीवन में वास्तविकता को लेकर जीना और कितने भी कष्ट परेशानियां आएं अपने कर्तव्य पर टिके रहना ही सत्य है . और जिसने अपने जीवन में सत्य को धारण कर लिया मानों उसने परमात्मा का दर्शन कर लिया .


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