Quantcast
Channel: Newstracklive.com | suvichar
Viewing all articles
Browse latest Browse all 13839

कण कण में बसता हे भगवानकण कण में बसता हे भगवान

$
0
0

मंदिर मस्जिद मे, कौन से रब को, ढूंढने है तू जाता।
सारे तीर्थ तुझे, तेरे घर मे ही मिलेंगे। 
जरा गौर से देख, अपने बूढ़े माँ बाप को।
वृद्धाश्रम मे छोड़, जिनको तू सताता है।
और लगा तिलक माथे पर, आडंबर तू रचाता है।
तू क्या जाने, क्या है भक्ति, और क्या होता भगवान।
जिस ने सींचा तुझे खून से, पहले ज़रा उसे तो पहचान।
इंसान के बनाए चबूतरो में, खुदा नही बसता।
सोने का चढ़ा कर छत्र, उसे खरीदने वाले, उसे न समझ पाता।
उसी की दी हुई इस दौलत, तू उसे ही चढ़ाता है।
और फिर उस चढ़ावे के बदले में, तू उससे बहुत कुछ चाहता।
तेरी तो भक्ति मे भी बस मतलब की बू ही आती है।
पर तू क्या जाने, उस से तो बस सद्बुद्धि ही मांगी जाती है।
अगर रहेगी बुद्धि तेरी ठीक, तो सही रास्ते पर चलता जाएगा।
ओर मैली सोच से तो तू सीधा नरक मे ही जगह पाएगा।
ईश्वर न किसी मूर्ती मे, न ही उसका कोई स्थान।
रखेगा नीयत पाक साफ, तो तेरे मन मे ही मिलेगा तुझे भगवान।
हर कण कण में हर रोम रोम में बसता हे ये भगवान।


Viewing all articles
Browse latest Browse all 13839

Trending Articles