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अब आप ही फैसला करे किसके साथ अन्याय हुआअब आप ही फैसला करे किसके साथ अन्याय हुआ

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भिक्षा लेकर लौटते हुए एक शिक्षार्थी ने मार्ग में मुर्गे और कबूतर की बातचीत सुनी. कबूतर मुर्गे से बोला- मेरा भी क्या भाग्य है? भोजन न मिले, तो मैं कंकर खा कर भी पेट भर लेता हूँ. कहीं भी सींक, घास आदि से घोंसला बना कर रह लेता हूँ. पता नहीं ईश्वर ने क्यों हमें इतना कमजोर बनाया है? माया मोह भी नहीं, बच्चे बड़े होते ही उड़ जाते हैं. जिसे देखो वह हमारा शिकार करने पर तुला रहता है. पकड़ कर पिंजरे में कैद कर लेता है. आकाश में रहने को जगह होती तो मैं कभी पृथ्वी पर कभी नहीं आता. मुर्गे ने भी अपना दुःख रोते हुए कहा- मेरा भी यही दुर्भाग्य है. गंदगी में से भी दाने चुन कर खाता हूँ. लोगों को जगाने के  लिए रोज सवेरे सवेरे एक भी दिन चूके बिना बाँग देता हूँ. पता नहीं ईश्वर ने हमें भी क्यों इतना कमजोर बनाया है? हलाल तक कर देता है. पंख दिये हैं, पर इतनी शक्ति दी होती कि आकाश में उड़ पाता तो मैं भी कभी भी पृथ्वी पर नहीं आता.

शिष्य ने दोनों की बात सुनकर सोचा कि अवश्य ही ईश्वर ने इनके साथ अन्याय किया है. आश्रम में आकर उसने यह घटना अपने गुरु को बताई और पूछा- गुरुवर, क्या ईश्वर ने इनके साथ अन्याय नहीं किया है? ॠषि बोले- ईश्वर ने पृथ्वी पर मनुष्य को सबसे बुद्धिमान प्राणी बनाया है. उसे गर्व न हो जाये, इसलिये शेष प्राणियों में गुणावगुण दे कर, मनुष्य को उनसे, कुछ न कुछ सीखने का स्वभाव दिया है. वह प्रकृति और प्राणियों में संतुलन रखते हुए, सृष्टि के सौंदर्य को बढ़ाए और प्राणियों का कल्याण करे. मुर्गे और कबूतर में जो विलक्षणता ईश्वर ने दी है, वह किसी प्राणी में नहीं दी है. मुर्गे जैसे छोटे प्राणी के सिर पर ईश्वर ने जन्मजात राजमुकुट की भाँति कलगी दी है. इसीलिए उसे ताम्रचूड़ कहते हैं. अपना संसार बनाने के लिए, उसे पंख दिये हैं किन्तु उसने पृथ्वी पर ही रहना पसंद किया. वह आलसी हो गया. और इसलिए लम्बी उड़ान भूल गया.

 


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