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जानें जन्माष्टमी व्रत पूजा विधि के बारे मेंजानें जन्माष्टमी व्रत पूजा विधि के बारे में

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शास्त्रों के अनुसार इस दिन व्रत का पालन करने से भक्त को मोक्ष की प्राप्ति होती है यह व्रत कामनाओं को पूर्ण करने वाला होता है. श्री कृष्ण जी की पूजा आराधना का यह पावन पर्व सभी को कृष्ण भक्ति से परिपूर्ण कर देता है. इस दिन व्रत-उपवास करने का विधान है. यह व्रत सनातन-धर्मावलंबियों के लिए अनिवार्य माना जाता है. इस दिन उपवास रखे जाते हैं तथा कृष्ण भक्ति के गीतों का श्रवण किया जाता है. घर के पूजागृह तथा मंदिरों में श्रीकृष्ण-लीला की झांकियां सजाई जाती हैं. जन्माष्टमी पर्व के दिन प्रात:काल उठ कर नित्य कर्मों से निवृत्त होकर पवित्र नदियों में, पोखरों में या घर पर ही स्नान इत्यादि करके जन्माष्टमी व्रत का संकल्प लिया जाता है.

पंचामृत व गंगा जल से माता देवकी और भगवान श्रीकृष्ण की सोने, चांदी, तांबा, पीतल, मिट्टी की मूर्ति या चित्र पालने में स्थापित करते हैं तथा भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति नए वस्त्र धारण कराते हैं. बालगोपाल की प्रतिमा को पालने में बिठाते हैं तथा सोलह उपचारों से भगवान श्रीकृष्ण का पूजन करते है. पूजन में देवकी, वासुदेव, बलदेव, नंद, यशोदा और लक्ष्मी आदि के नामों का उच्चारण करते हैं तथा उनकी मूर्तियां भी स्थापित करके पूजन करते हैं. भगवान श्रीकृष्ण को शंख में जल भरकर, कुश, फूल, गंध डालकर अर्घ्य देते हैं. पंचामृत में तुलसी डालकर व माखन मिश्री का भोग लगाते हैं.

रात्रि समय भागवद्गीता का पाठ तथा कृष्ण लीला का श्रवण एवं मनन करना चाहिए. भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति अथवा शालिग्राम का दूध, दही, शहद, यमुना जल आदि से अभिषेक किया जाता है तथा भगवान श्री कृष्ण जी का षोडशोपचार विधि से पूजन किया जाता है. भगवान का श्रृंगार करके उन्हें झूला झुलाया जाता है. श्रद्धालु भक्त मध्यरात्रि तक पूर्ण उपवास रखते हैं. जन्माष्टमी की रात्रि में जागरण, कीर्तन किए जाते हैं व अर्धरात्रि के समय शंख तथा घंटों के नाद से श्रीकृष्ण-जन्मोत्सव को संपन्न किया जाता है.


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