
चैत्र शुक्ल नवमी यानी रामनवमी के दिन प्रभु श्रीराम का जन्म हुआ। इस दिन त्रेतायुग में पुनर्वसु नक्षत्र और कर्क लग्न में माता कौशल्या ने भगवान विष्णु के सातवें अवतार श्रीराम की माता बनीं। दरअसल चैत्रमास की नवमीं को पुनर्वसु नक्षत्र मिलने पर ही यह पर्व होता है।
श्रीरामचरितमानस के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन रानियां थीं कौशल्या, कैकेयी और सुमित्रा। लेकिन तीनों के पुत्र प्राप्त नहीं थे। गुरु वशिष्ठ की आज्ञा से राजा दशरथ ने श्रृंगी ऋषि को पुत्रेष्टि यज्ञ करवाने के लिए प्रार्थना की।
यज्ञ के बाद पवित्र अग्निकुंड में से खीर से भरा हुआ पात्र हाथों में लिए अग्नि देव प्रकट हुए और राजा दशरथ से बोले, देवता आप से खुश हुए। यह पात्र खीर से भरा हुआ है। इस खीर को अपनी तीनों रानियों को खिला दें। आपको चार पुत्रों की प्राप्ति होगी।
राजा दशरथ ने सबसे पहले खीर का आधा भाग सबसे बड़ी रानी कौशल्या को दिया। फिर बचे हुए आधे भाग का आधा भाग मंझली रानी सुमित्रा को दिया। इसके बाद जो बचा रह गया वह छोटी रानी कैकयी को दिया। अन्त में खीर मिलने पर कैकयी को अच्छा नहीं लगा। वह राजा दशरथ से नाराज हो गईं।
तभी भगवान शंकर ने एक माया रची की एक चील वहां आई और कैकयी के हाथ से खीर लेकर उड़ गई। वह चील अंजन पर्वत पर अंजनी देवी के पास पहुंची। उस समय देवी अंजनी तपस्या में लीन थीं।
चील ने वह खीर उनके हाथों में जाकर रख दी। उन्होंने भगवान का प्रसाद मान उस खीर को खा लिया। दूसरी तरफ कौशल्या और सुमित्रा ने अपना बड़प्पन दिखाते हुए कैकयी को अपने प्रसाद का कुछ भाग दे दिया।
खीर खाने से अंजनी भी राजा दशरथ की तीनों रानियों की तरह गर्भवती हुई। सही वक्त आने पर राजा दशरथ के घर श्री राम, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न का जन्म हुआ। देवी अंजनी ने हनुमानजी को जन्म दिया। यही कारण है कि पवित्र अग्निकुंड से निकली एक ही खीर से श्री राम और हनुमान जी का जन्म होने से दोनों भाई माने जाते हैं।