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तब कृष्ण ने बचाई थी द्रोपदी की लाजतब कृष्ण ने बचाई थी द्रोपदी की लाज

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रक्षाबंधन की परंपरा ही उन बहनों ने डाली थी जो सगी नहीं थीं। भले ही उन बहनों ने अपने संरक्षण के लिए ही इस पर्व की शुरुआत क्यों न की हो लेकिन उसी बदौलत आज भी इस त्योहार की मान्यता बरकरार है। इतिहास के पन्नों को देखें तो इस त्योहार की शुरुआत की उत्पत्ति लगभग 6 हजार साल पहले बताई गई है। इसके कई साक्ष्य भी इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं।
 
भगवान श्रीकृष्ण और दौपदी
इतिहास में भाई-बहन के रिश्ते को सार्थक करता है भगवान श्री कृष्ण और द्रौपदी का रिश्ता। कृष्ण भगवान ने दुष्ट राजा शिशुपाल को मारा था। युद्ध के दौरान कृष्ण के बाएँ हाथ की अँगुली से खून बह रहा था। इसे देखकर द्रोपदी बेहद दुखी हुईं और उन्होंने अपनी साड़ी का टुकड़ा चीरकर कृष्ण की अँगुली में बाँधा जिससे उनका खून बहना बंद हो गया। तभी से कृष्ण ने द्रोपदी को अपनी बहन स्वीकार कर लिया था। वर्षों बाद जब पांडव द्रोपदी को जुए में हार गए थे और भरी सभा में उनका चीरहरण हो रहा था तब कृष्ण ने द्रोपदी की लाज बचाई थी।
 
देवराज इन्द्र और शची की कथा
रक्षा बंधन की एक कथा के अनुसार, एक समय, देवताओं का राजा इन्द्र, अपने शत्रु वृत्रासुर से हार गया. तब वह देवों के गुरु बृहस्पतिजी के पास गया. तब देवगुरु बृहस्पतिजी की सलाह से विजय प्राप्ति के लिये इन्द्र की पत्नी 


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