
मंदिर में घंटी लगाने का प्रचलन भी बहुत प्राचीनकाल से शुरू हो चुका था। इसका प्रमाण कई प्राचीन मंदिरों की दीवारों पर बनी मूर्तियां, भित्तिचित्र आदि से ज्ञात हो सकता है।
घंटी लगाने के दो कारण थे- पहला घंटी बजाकर सभी को प्रार्थना के लिए बुलाना और सकारात्मक वातावरण का निर्माण करना। जब सृष्टि का प्रारंभ हुआ तब जो नाद था, घंटी की ध्वनि को उसी नाद का प्रतीक माना जाता है। यही नाद ओंकार के उच्चारण से भी जाग्रत होता है।
जिन स्थानों पर घंटी बजने की आवाज नियमित आती है, वहां का वातावरण हमेशा शुद्ध और पवित्र बना रहता है। इससे नकारात्मक शक्तियां हटती हैं। नकारात्मकता हटने से समृद्धि के द्वार खुलते हैं। प्रात: और संध्या को ही घंटी बजाने का नियम है, वह भी लयपूर्ण। घंटी या घंटे को काल का प्रतीक भी माना गया है। ऐसा माना जाता है कि जब प्रलयकाल आएगा, तब भी इसी प्रकार का नाद यानी आवाज प्रकट होगी।