
मन से दूर कोई स्थान' मंदिर का शाब्दिक अर्थ 'घर' है और मंदिर को 'द्वार' भी कहते हैं, जैसे रामद्वारा, गुरुद्वारा आदि। मंदिर को 'आलय' भी कह सकते हैं, जैसे कि शिवालय, जिनालय आदि। लेकिन जब हम कहते हैं कि मन से दूर जो है, वह मंदिर तो उसके मायने बदल जाते हैं। यह ध्यान रखें कि मंदिर को अंग्रेजी में 'मंदिर' ही कहते हैं 'टेम्पल' नहीं।
द्वारा किसी भगवान, देवता या गुरु का होता है, आलय सिर्फ शिव का होता है और मंदिर या स्तूप सिर्फ ध्यान-प्रार्थना के लिए होते हैं, लेकिन वर्तमान में उक्त सभी स्थान को 'मंदिर' कहा जाता है जिसमें कि किसी देव मूर्ति की पूजा होती है।
मन से दूर रहकर निराकार ईश्वर की आराधना या ध्यान करने के स्थान को 'मंदिर' कहते हैं। जिस तरह हम जूते उतारकर मंदिर में प्रवेश करते हैं उसी तरह मन और अहंकार को भी बाहर छोड़ दिया जाता है। जहां देवताओं की पूजा होती है उसे 'देवरा' या 'देव-स्थल' कहा जाता है। जहां पूजा होती है उसे पूजास्थल, जहां प्रार्थना होती है उसे प्रार्थनालय कहते हैं। वेदज्ञ मानते हैं कि 'भगवान प्रार्थना से प्रसन्न होते हैं, पूजा से नहीं।'