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सच की ही अंत में जीत होती हैं, पढ़िए कहानीसच की ही अंत में जीत होती हैं, पढ़िए कहानी

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यह सच है कि तेनालीराम से महाराज कृष्णदेव राय के दरबारी कितना जलते थे. वे हर समय उन्हें किसी न किसी मुश्किल में डालने की कोशिश करते रहते थे. राजा की समस्या यह थी कि सबकुछ जानते हुए भी वे दरबारियों के कहने में आ जाते थे.

एक दिन उन्होंने महाराज से कहा - 'आपने तेनालीराम को बहुत छूट दे रखी है. वह खुद को दरबार का सबसे होशियार सदस्य मानता है. आप से भी ज्यादा.' महाराज ने कहा - 'अच्छा, अगर ऐसा है, तो बुलाओ तेनालीराम को.' तेनालीराम को राजा के सामने हाजिऱ देखकर सारे दरबारी खुशी से फूले नहीं समा रहे थे. अब पता चलेगा बच्चू को. महाराज ने कहा - 'तेनालीराम, तुम खुद को बहुत होशियार समझते हो न. आज हम तुम्हारी परीक्षा लेंगे.' तेनालीराम बोले - 'जी हुज़ूर. जैसा आप चाहें.'

महाराज ने कहा - 'परीक्षा बहुत सरल है. तुम एक ही वाक्य बोल सकते हो. अगर वह सही हुआ, तो तुम्हारा सिर तलवार से उड़ा दिया जाएगा और अगर तुमने झूठ कहा, तो तुम्हे फांसी की सज़ा दे दी जाएगी.' अब तो दरबारी भी उलझन में पड़ गए. जो तेनालीराम को पसंद करते थे, वे चिंतित थे. उन्हें लगा अब तेनालीराम का बचना मुश्किल होगा. तेनाली सोच में डूबे थे. उन्होंने कुछ क्षण का समय राजा से मांगा. सारे दरबार में चुप्पी छाई थी.

थोड़ी देर बाद तेनालीराम ने अपना वाक्य कहा - 'महाराज आप मुझे फांसी देने वाले हैं. 'प्रधानमंत्री  जो तेनालीराम को बेहद पसंद करते थे, खुशी से उछल पड़े. बोले- 'महाराज, आप फंस गए. तेनालीराम ने कहा कि आप उन्हें फांसी देने वाले हैं, अगर आपने कहा कि यह झूठ है तो तेनालीराम को फांसी देनी होगी. अगर ऐसा किया तो उनकी बात सच्ची होगी और आपको उनका सिर तलवार से काटना होगा. अब सिर पहले काटना है या फांसी पहले देनी है यह कैसे तय होगा?'महाराज चकरा गए. तेनालीराम की चतुराई के एक बार सब फिर कायल हो गए थे. महाराज ने उन्हें शाबाशी दी.

 


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