
मानव जीवन में उसके मन की एकाग्रता ही उसे सफलता की राह तक ले जाती है. जीवन में अच्छे और बुरे का निर्णय तभी मानव ले पाता है .मानव का मन इतना चंचल होता है कि पल में यहां और पल में वहां खो सा जाता है. इसकी एकाग्रता तभी संभव है. जब मानव साधक बनकर शांत भाव से आंख बंद कर बैठ जाए और ईश्वर के दिव्य प्रकाश का स्मरण करे. तो उसको अनंत अंतरिक्ष में विशाल प्रकाश पुंज दिखाई पड़ेगा।
दोनों हाथ ऊपर की ओर उठाकर मन को नियंत्रित करके उस दिव्य आलोक में प्रवेश करने का प्रयास करें।हिरन की तरह भटकते इस मानव के मन को एकाग्रता प्रदान करने के लिए साधक बनकर एकाग्रता को हासिल करना ही होगा .
साधक बनकर ध्यान और प्रार्थना में सबसे महत्वपूर्ण है, आपका सकारात्मक विचार. मनुष्य किस भाव से, किस कारण से, किस कामना की सिद्धि के लिए मंदिर में बैठा है, वह सब परमात्मा समझता है. वह बनावटी भाषा या शास्त्रज्ञान सुनकर प्रभावित नहीं होता. आपके मन के विचार, धारणा ही आपके जीवन में अच्छी राह प्रदान करते है . आपके द्वारा की गई प्रार्थना में विचार प्रधान होता है. वहां कोई भाषा नहीं होती. केवल विचार होता है और आज विज्ञान भी मानने लगा है कि विचार से पदार्थ प्रभावित हो सकता है.
वैज्ञानिकों का मत है कि जिस प्रकार प्रकृति में पदार्थ के अणु होते हैं, बस उसी प्रकार विचार के भी अणु होते हैं. अगर पदार्थ के अणु जीवंत हैं तो विचार के भी अणु जीवंत होते हैं. हम जल में पत्थर फेंकते हैं तो तरंग उठती है, उसी प्रकार जब हम किसी विषय पर विचार करते हैं तो वहां भी तरंग उठती है. यह तरंग पूरे वातावरण में उठती है. विचार करते ही वातावरण में जो तरंग उठती है, वह अनंत दिशाओं तक फैल जाती है, क्योंकि विचार अणु के समान स्थूल नहीं सूक्ष्म है और सूक्ष्म की कोई सीमा नहीं होती. विचार ऊर्जा है और ऊर्जा का कभी नाश नहीं होता केवल उसका रूप बदल जाता है. मानव मन में एकाग्रता का भाव होना उसे उसके जीवन में उन्नति और समृद्धि का प्रतीक है .