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क्या है इस संसार की क्षणभंगुरताक्या है इस संसार की क्षणभंगुरता

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इस संसार सागर में प्रकृति हर पल अपना नया रुख ले रही है. यह संसार परिवर्तनशील है। हम इस संसार सागर से इतना मोहित हो जाते है. विषय और वस्तुओं में इतने लीन हो जाते है, कि स्वयं को भूल जाते है. की हम क्या है. और क्या कर रहे है. इतना ही नहीं मानव होकर भी मानवता का कोई जिक्र ही नहीं करते है . इस संसार में कोई किसी का नहीं है. आप स्वयं में अकेले थे, हैं और रहेंगे. जगत में संबंध बनते-बिगड़ते रहते हैं.

संसार की क्षणभंगुरता -

कबीरा यह जग कुछ नहीं, खिन खारा मीठ, काल जो देखे मण्डपे आज मसाने दीठ. इस संसार सागर की परिवर्तनशीलता को बताते हुए कहा जा रहा है कि यह संसार स्थिर नहीं है .यह हर पल बदल रहा है. कल कुछ था आज कुछ है. और कल कुछ होगा ,कहीं खुशी तो कहीं गम कल हमने जिस दुल्हन को सजते सवरते खुशियों के साथ विवाह मंडप पर देखा था आज वही शमशान में मुर्दे के रूप में दिखाई दे रही है .यह जगत परिवर्तन शील है. कभी खुशी तो कभी गम , फिर भी न बदले हम न बदली हमारी सोच ऐसा क्यों? जीवन में कुछ अच्छा करना है, मोह का त्याग करना है. सबके साथ सामान व्यवहार और शिष्टाचार से रहना है . जीवन में कोई किसी का नहीं. न कोई अपना न कोई पराया बस हम सब में हो भाईचारा .

जगत में रहते हुए संयोग बनते ही रहते हैं, और बिगड़ते भी जाते हैं. जब संयोग बना, तब भी आप थे और जब वियोग हुआ, तब भी आप ही स्वयं थे. उसमें कोई परिवर्तन नहीं हुआ. आप वहीं के वहीं रहे. आपका अस्तित्व किसी के साथ संबंध बनने व समाप्त हो जाने के अधीन नहीं है. संयोग बनना व वियोग होना तो सांसारिक प्रपंच मात्र है।

आपको चाहिए की आप इस परिवर्तन शील जगत में रहते हुए अपने विचारों और भावों को अच्छा रखें. परोपकार की भावना रखें और नीति पर चलें न जानें कब यह आत्मा इस शरीर को छोड़ दे .


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