
संत वह होता है. जिसका मन निर्मल हो उसके भावों और विचारो की प्रधानता से ही उसे संत की उपाधी मिलती है. इसी में एक महान व्यक्ति स्वामी विवेकानंद है. ये महान पुरुष बचपन से ही बुद्धिमान थे। उनका व्यक्तित्व बहुत ही प्रभावशाली था। स्वामी विवेकानंद.को बचपन में नरेंद्र के नाम से लोग पुकारते थे .
बचपन से से ही इनका स्वभाव बहुत ही अच्छा, और परोपकार की भावना थी. जब भी वे किसी व्यक्ति से बात करते तो तल्लीनता से उनकी बातों को सुनते और बड़े ही सरल भाव से उसका जबाब देते थे। एक बार ऐसी ही स्थिति में शिक्षक कक्षा में आ गए और पढ़ाना शुरू कर दिया। छात्रों को पता ही नहीं चला।
शिक्षक ने कहा- 'सभी छात्र वहां एक जगह क्यों एकत्र हैं?' शिक्षक वहां तुरंत पहुंचे और छात्रों से प्रश्न पूछने लगे। उनके प्रश्नों का उत्तर कोई छात्र नहीं दे सका। लेकिन नरेंद्र ने उस प्रश्न का उत्तर तुरंत दे दिया। शिक्षक ने सभी छात्रों को खड़े रहने की सजा दी।तब नरेंद्र ने कहा कि मैं सुन रहा था। नरेंद्र जिसे हम स्वामी विवेकानंद के नाम से जानते है. वे बचपन से ही साहसी प्रवृत्ति के थे।
एकाग्रता के साथ प्रत्येक कार्य को करते थे. उन्होंने हमेशा सच का साथ दिया और जिदंगी भर ईमानदारी का पथ अपनाया है. यदि आप भी ईमानदारी के साथ अपने जीवन में किसी कार्य को एकाग्रता के साथ करते है .तो प्रत्येक मुश्किल से मुश्किल कार्य मुमकिन हो जाता है. आप जीवन में उन्नति प्राप्त कर सकते है .