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मानव के सम्पूर्ण जीवन का आनंद तो उसके यथार्थ में ही छिपा हैमानव के सम्पूर्ण जीवन का आनंद तो उसके यथार्थ में ही छिपा है

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आज जीवन के प्रत्येक क्षण में हम चिंता को लेकर जी रहे है. आज मानव भविष्य की चिंता को लेकर इतना परेशान सा है की उसे स्वयं का होश नहीं की हम क्या है. इससे उसका आत्म विशवास घटता सा जा रहा है . मानव का चिंताग्रस्त होना, चिंता की मुट्ठी में कैद होना आत्म-विनाश का मार्ग है।

मानव को इस विनाश से मुक्ति जरूरी है। कई बार यह होता है की हम हमारे जीवन में घटित हुई घटनाओ को लेकर दुखी और उन्हीं की सोच में लगे रहते है .इससे हमारा वर्तमान समय भी नष्ट हो जाता है .और भविष्य के लिए की गई योजना भी फेल हो जाती है . यदि आपको सफल जीवन चाहिए तो भूत छोड़ वर्तमान के साथ चलो भविष्य उज्ज्वल ही होगा. 

बीती बातों ,यादों को भुला दो उन यादों से मात्र सीख लो और वर्तमान में जीना सीखों आप भविष्य की चिंता के बोझ को अपने कंधों पर मत रखो वर्तमान में ही कुछ ऐसा करो की भविष्य में कोई बोझ ही न आये .

इसलिए कहा गया है की- 

बीती बात बिसारिये , आगे की सुध ले . 

बीते समय को अब भूल जाओ आने वाले समय को वर्तमान में ही उज्जवल बनाओ आपने सैनिक को तो देखा होगा जो अपने प्राणों को दाव में लगा देता है और कभी भी भविष्य की चिंता नहीं करता कि उसके बाद उसके काम का क्या होगा? उसके परिवार का क्या होगा आगे का जीवन कैसे कटेगा . वह तो अपने वर्तमान कर्तव्य की ही चिंता करता है." चिंता के कारणों का विश्लेषण करने पर ज्ञात होगा कि चिंता का कारण मन में बैठा हुआ एक कल्पित भय है.


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